राज्य सरकार के शोणितपुर के बॉलीबॉल कोच डॉ. दिव्यज्योति भागवती का मानना है कि भारतीय राष्ट्रीय टीम में कम से कम एक असमिया तो होना ही चाहिए। अपनी इस चाहत को पूरा करने तथा इसके लिए प्रतिभा की खोज करने का बीड़ा उन्होंने स्वयं उठाया। इस प्रयास के तहत उन्होंने जूते के दुकानों का दौरा करते हुए 10 तथा उससे ऊपर के नंबर के जूतों की आवश्यकता रखने वाले लोगों का पता लगाया। अपने इसी अभियान के तहत उनकी मुलाकात युवा खिलाड़ी अभिजीत भट्टाचार्य से हुई, जिन्होंने वर्ष 1996 से 2000 तक न सिर्फ भारत का प्रतिनिधित्व कर अपने कोच का सपना पूरा किया था बल्कि वर्ष 2003 से 2005 तक राष्ट्रीय टीम के कप्तान भी रहे।
शुरुआती दिनों में कोच ने अभिजीत को बैडमिंटन से वॉलीबॉल में लाने के लिए भट्टाचार्य परिवार को मनाया था। राष्ट्रीय टीम में असम से खेलनेवाले वे एकमात्र खिलाड़ी थे। यह किसी रिकार्ड से कम नहीं था, वे सबकुछ बदल देना चाहते थे। सेवानिवृत्ति के बाद अभिजीत एक पेशेवर की तरह अपने लक्ष्य को पूरा करने में जुट गए l इस खेल को वे सबकुछ देना चाहते थे,जिस खेल ने उन्हें सबकुछ दिया था। वे असम के बच्चों को इस खेल के रोमांच व आनंद का अनुभव कराना चाहते थे।
उन्होंने कहा,”यह खेल कम लागत, सीखने और खेलने में आसान तथा प्रत्यक्ष देखनेवाले दर्शकों के लिए बेहद रोमांचक और आनंद से भरपूर होता है। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए यह एक आदर्श खेल है l अब उनका मिशन असम के 100 गांवों से 100 अभिजीत तलाशने की है। कोविड 19 लॉकडाउन के दौरान, उन्होंने पूरे असम के इच्छुक खिलाड़ियों के लिए ऑनलाइन कोचिंग कराई थी l अपने गृहक्षेत्र के नजदीक उन्होंने कुछ बच्चों को उपयुक्त उपकरणों के बिना ही फुटबॉल खेलते देखा। वहां और उसी समय उन्होंने उन्हें हाथ वाले तौलिए से फुटबॉल बनाना सिखाया। इस अनुभव ने उनके दिल पर गहरी छाप छोड़ी। इसके बाद उन्होंने उन्हें वॉलीबॉल दिलाने के साथ ही कई अन्य को प्रशिक्षित करने के लिए संसाधन जुटाने को अपना लक्ष्य बना लिया।
सभी हलकों से जिज्ञासाएँ आने पर उन्होंने उनकी रूचि को परखने के लिए एक ऑनलाइन अंडर हैंड वॉलीबॉल का आयोजन किया। इन्हीं सामान्य पहलों के माध्यम से ब्रह्मपुत्र वॉलीबॉल लीग (बीवीएल), का उदय हुआ जिससे कि इस खेल में पूरे असम से इस खेल को लेकर लोगों का रुझान बढ़ता चला गया। बीवीएल के पहले बैच में 49 टीमों (33 पुरुष, 16 महिलाएं) से 400 खिलाड़ी थे। पैसों की कमी को दूर करने के लिए उन्होंने अपने मित्र व सह खिलाड़ियों से कम से कम 12,000 रुपए की लागत से एक एक टीम को खरीदने का आग्रह किया। मालूम हो कि मौजूदा बीवीएफ में कई ऐसी टीमें हैं, जिन्हें कुछ जानेमाने लोगों ने खरीद रखा है। जैसे भारत की पूर्व वॉलीबॉल कप्तान वैशाली फाड़तारे दागियापरा), पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी तथा अर्जुन पुरस्कार विजेता अपर्णा पोपट (पहले सत्र के दौरान पूब नलबाड़ी वीसीसी , धेमाजी से धूलिमार महिला वॉलीबॉल टीम), पूर्व केकेआर निदेशक जॉय भट्टाचार्य (बापूजी क्लब वीसीसी), यूएस के गैर सरकारी संगठन फैस इंटरनेशनल (हजारिकापारा), एनआरआई देबोजित बोरा (चतुरंग वीसीसी) आदि।
दूसरे सत्र में लीग में बेहतर भागीदारी देखी गई। इसके अंतर्गत 209 टीमों से 2,200 खिलाड़ियों ने भाग लिया। वहीं तीसरे सत्र में लीग को 300 टीमों के भाग लेने की उम्मीद है। बताते चलें कि रिकॉर्ड में आगामी अक्तूबर माह प्रतियोगिता के लिए 116 गाँव पहले ही नामांकन करा चुके हैं। असम वार्ता से बातचीत करते हुए , स्पाइकर ने अपनी पहल के शुरुआती सफलता पर संतुष्टि जाहिर की। असम में छिपी प्रतिभाओं की कमी नहीं। जरूरत है तो सिर्फ उन्हें खेल संबंधी माहौल की। अब बीवीएल ने ग्रामीण क्षेत्र के खिलाड़ियों को सशक्त करने का बीड़ा उठाया है। उन्होंने कहा, ” दूसरे सत्र की शुरुआत करते हुए हमने फेसबुक पेज पर इन मैचों का सीधा प्रसारण शुरू किया है।” साथ ही उन्होंने यह भी कहा “मेरा मानना है कि इससे उन्हें पर्याप्त संसर्ग मिलेगा।”
उल्लेखनीय है कि पहली बार वॉलीबॉल खेलने के साथ ही इन बच्चों को सुचारु रूप से आयोजित एक प्रतियोगिता में भाग लेने का भी मौका मिल रहा है। इसका अर्थ है अपने नाम सहित टीम की जर्सी, अपने गांव से बाहर दौरा कर नई चीजों का अनुभव लेना आदि। उन्होंने आगे कहा ” ये सभी छोटी-छोटी बातें इन बच्चों का उत्साह बढ़ाने व उन्हें प्रेरित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है l”
इनके अलावा भी जिन गांवों में बीवीएल खेला गया है, वहां बच्चों को मेजबानी करने तथा दूसरों को आनंद उठाने का भरपूर मौका मिला। लोगों ने खिलाड़ियों के लिए सब्जियाँ, पके हुए व्यंजन, भोजन आदि उपलब्ध कराए और उनका उत्साह बढ़ाते हुए उनका समर्थन किया। उनके दृढ़ संकल्प और कठिन प्रयासों ने उनमें आशा का संचार करने और सहयोग के लिए एक ईकोसिस्टम तैयार करने में मदद की। प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को अपना ही एक लीग मिलने का अवसर प्राप्त हुआ है।