मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा ने कहा कि जिन लोगों ने आपातकाल की घोषणा का विरोध किया और असहनीय पीड़ा सहन की और लोकतांत्रिक भावना को मजबूत करने के लिए अपार बलिदान दिया, वे वर्तमान पीढ़ी के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं।
उस दिन और उसके महत्व को याद करने के लिए 25 जून को गुवाहाटी में 301 लोकतंत्र सेनानी और उनके रिश्तेदारों को सम्मानित करने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस अवसर पर उनमें से 91 को पेंशन संबंधी कागजात सौंपे गए। इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि 25 जून 1975 को भारतीय लोकतंत्र में ‘काला दिन’ माना जाता है। इस दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश के आधार पर भारत के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल की घोषणा की थी। उन्होंने कहा कि सभी लोकतांत्रिक सिद्धांतों और मानदंडों की धज्जियां उड़ाते हुए आपातकाल की घोषणा की गई। मुख्यमंत्री ने कहा, हालांकि, तत्कालीन प्रधानमंत्री की मनमानी का सामना करते हुए, लाखों भारतीयों ने लोकतंत्र को खत्म करने के लिए आवाज उठाई और बदले में उन्हें जेल जाना पड़ा।
यहां तक कि असम में भी हजारों लोगों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री की निरंकुशता के खिलाफ आवाज उठाई। डॉ शर्मा ने यह भी कहा कि लोकतंत्र की वापसी के लिए कड़ा संघर्ष करने वाले लोकतंत्र सेनानी को अपनी मान्यता के लिए इंतजार करना पड़ा। उन्होंने कहा कि इस आजादी के अमृत काल में इन सेनानियों को प्रतिमाह पेंशन देने का निर्णय कर असम सरकार ने उनका अभिनंदन करने का निर्णय लिया है। 19 अप्रैल की कैबिनेट बैठक में 15,000 रुपये प्रतिमाह पेंशन देने का निर्णय लिया गया। लोकतंत्र सेनानी की मृत्यु की स्थिति में, उसकी पत्नी या उसकी अविवाहित बेटी मासिक पेंशन की हकदार होगी।