विद्यांजलि योजना के तहत असम का अव्वल आना, भले ही देशभर के लोगों का ध्यानाकर्षण नहीं किया हो, मगर यह एक महती उपल्बधि है जिससे इन्कार नहीं किया जा सकता। असम को यह सम्मान स्वयंसेवी पंजीकरण और संपत्ति / सामग्री योगदान में हासिल हुआ है। आंकड़ों में रुचि रखने वालों को इस तथ्य से संतोष हो सकता है कि अब तक 29,602 स्वयंसेवकों ने अपने मातृ संस्थान, या अपनी पसंद की संस्था को कुछ वापस देने के लिए पंजीकरण कराया है।
संस्थान के पूर्व विद्यार्थियों द्वारा 27,022 पंखे और सैकड़ों फर्नीचर सामग्री दान की गई है, यह महत्वपूर्ण नहीं है। इसमें जो सबसे अधिक महत्व की बात है, वह देने वाले की मानसिकता। इस उपलब्धि पर राज्य को अपने नागरिकों पर गर्व हो सकता है। इस घटना को समझने की कोशिश करते समय जो बात ध्यान में रखी जानी चाहिए वह यह है कि असम में 95% से अधिक स्कूल क्षेत्र के स्थानीय लोगों द्वारा स्थापित किए जाते हैं। जो बाद में प्रादेशीकरण के बाद सरकारी शिक्षण संस्थान का रूप ले लेते हैं। इसलिए, शुरुआत से ही एक भावनात्मक संबंध आकार लेता है। इसमें शामिल होने वाले अधिकांश शिक्षक रोजगार की तलाश में नहीं बल्कि वे समाज को वापस कुछ देना चाहते हैं, इसलिए आते हैं।
इस पत्रिका के साथ एक रिपोर्ट में, हमने व्यक्तियों, पूर्व छात्रों और गांवों के विशिष्ट मामलों पर प्रकाश डाला है जो अपनी पसंद के संस्थान को जो कुछ भी दे सकते हैं उसे देने के लिए आगे आए हैं। उनकी गवाही भी एक चमकदार उदाहरण है कि वे अभी भी एक शिक्षण संस्थान को अपने लिए प्रिय मानते हैं, हालांकि उनके बेटे और बेटियां अब उस स्कूल का हिस्सा नहीं हैं। विद्यांजलि उस कर्तव्य की भी याद दिलाती है जो शिक्षकों का अपने छात्रों के प्रति है और साथ ही राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी है कि वह खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में समग्र शिक्षा परिदृश्य सुधारे।