1992 में शोणितपुर जिले के घोरामारी में देखिडोल गांव के मनोज कुमार बसुमतारी ने संयुक्त प्रवेश परीक्षा में सफलता हासिल कर अपने माता-पिता और आसपास के सभी लोगों को गौरवान्वित किया। कुछ मुट्ठी भर उम्मीदवारों में गांव के इस नौजवान का नाम आना सबके लिए खुशी का क्षण था। लेकिन मनोज के दिमाग में कुछ और ही सपने ताना बाना बुन रहे थे। वह दिल्ली जाना चाहता था, और स्पष्ट करें तो सेंट स्टीफंस कॉलेज में दाखिला लेना चाहता था। उसके बाद यूपीएससी करना चाहता था। उसने इसकी पूरी योजना भी बनाई थी। सेंट स्टीफंस कॉलेज से गणित में स्नातक करने के बाद उसने कैंपस लॉ सेंटर में दाखिला ले लिया। हालांकि इस बीच परिवार का ध्यान रखने और जिम्मेदारी निभाने के लिए 1999 में उसने नौकरी तलाशना शुरू किया। उसे तीन बैंकों में पीओ की पोस्ट के लिए इम्तिहान पास किया और तत्कालीन यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में बतौर पीओ नौकरी ले ली। दस महीने बाद वह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में आ गया।
लेकिन, उसके गांव की याद उसे कहीं और ही ले जाना चाहती थी। वह अपने गांव की मिट्टी की सुगंध को नजरअंदाज नहीं कर सका। 2013 में नौकरी से इस्तीफा देने के बाद मनोज असम में अपने पैतृक गांव ढेकीडोल लौट आया और फिर कभी वापस मुड़कर नहीं देखा।
उसने तय किया कि वह अपने खेत और जमीन में मेहनत करेगा और कृषि के जरिये असम की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में योगदान करेगा। अब तक वह इतनी दुनिया देख चुका था कि भलीभांति समझता था कि उसे यह सब कैसे करना है। वह अपने भाई के दोस्त खनींद्र कालिता से मिला, जिन्होंने उसे अपने जीवन के नए अध्याय को शुरू करने के लिए सूअर पालन का सुझाव दिया। स्वभाव से मेहनती मनोज ने इस क्षेत्र पर शोध शुरू किया। 2014 में खनींद्र के साथ ही उसने 25 मादा व दो नर सूअर के साथ सूअर पालन का काम शुरू किया। इसी साल वह अपने बैंकर की पत्नी के साथ बेल्जियम गया और सूअर पालन पर यूरोपीय मॉडल को समझा। उनके तौर तरीके सीखे। अगले साल, वह नीदरलैंड्स गया और वहां के फार्म कैसे काम करते हैं यह सीखा। असम वार्ता को मनोज ने बताया कि बेल्जियम और नीदरलैंड्स से जो कुछ सीखा उसने सूअर पालन के प्रति मेरे नजरिये को बदल दिया।
मनोज और खनींद्र ने 2016 में अपनी जान पहचान को साझेदारी में तब्दील किया और सिम्बायॉटिक फूड्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक कंपनी शुरू की। उनकी कंपनी की अब बड़े नामों के साथ गिनती होती है। उन्होंने सबसे पहले सूअर के बच्चे बेचने से शुरुआत की और बाद में वह प्रजनन स्टॉक, लाइव फैटनर, फीड आदि बेचने लगे। इसके अलावा, उन्होंने आस-पास के क्षेत्रों में सूअर पालन करने वालों के लिए टीके और अन्य आवश्यकताओं की सुविधा भी प्रदान की।
कोरोना के कारण लगे लॉकडाउन में सिम्बायोटिक्स ने ‘स्लाइस ऑफ गहोरी’ नामक मांस के ब्रांड की बिक्री शुरू की। वित्त वर्ष 2021-22 में उनकी फर्म का टर्नओवर 3 करोड़ रुपये था। उन्होंने दावा किया कि उनकी फर्म का मूल्य वर्तमान में 15 करोड़ रुपये है। असम वार्ता को उन्होंने बताया, हम अब कृत्रिम गर्भाधान पर काम कर रहे हैं। इसके अलावा, हम अपने उत्पाद का निर्यात भी शुरू करना चाहते हैं।
मनोज कहते हैं, सफलता की परिभाषा व्यक्तिपरक है। मेरे मामले में, मैं कई युवा चेहरों को लाभकारी रूप से नौकरी करता हुआ देखकर संतुष्टि प्राप्त करता हूं, हालांकि ऐसे क्षेत्र हैं जहां मैं और अधिक हासिल करना चाहता हूं। उनकी कंपनी ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनके गांव व आसपास के इलाकों में सैकड़ों लोगों को
जीविका प्रदान की है। देकारगांव में उनके रिटेल आउटलेट के एक कर्मचारी
जुनमोनी बरुआ ने कहा, सर ने मेरे जैसे कई लोगों को आत्मनिर्भर होने और अपने जीवन को सार्थक बनाने का मौका दिया है।
सोनितपुर में धलाईबिल की उद्यमी परी बर्मन सैकिया, 2020 में मनोज के पास आईं और अपना सूअर पालन शुरू करने के लिए उनसे प्रशिक्षण प्राप्त किया। वह उन 1500 या उससे अधिक लोगों में से एक हैं जिन्होंने 2017 से अब तक सिम्बायोटिक फूड्स के कार्यक्रमों में प्रशिक्षण प्राप्त किया और सूअर पालन का अपना काम शुरू किया। सिम्बायोटिक फूड्स ने पूर्वोत्तर के युवाओं को खास प्रशिक्षण देने के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किए थे। परी बर्मन ने बताया, यह मेरे लिए बिल्कुल नया क्षेत्र था। हालांकि, उन्होंने हमें वैज्ञानिक तरीके से सूअर
पालन की बारीकियां बताईं। यहां तक कि उनकी चिकित्सा टीम ने भी हमें सुभेद्यता के उन संभावित क्षेत्रों को समझने में मदद की, जिनसे सूअर पालन का खतरा बहुत अधिक है। जरूरत पड़ने पर मदद के लिए वह हमेशा तत्पर रहते हैं। परी की उपलब्धियों के अलावा ढेकियाजुली के डेविड बासुमत्री और शिवसागर के राजा दत्ता दो ऐसे लोग हैं जिन पर भी मनोज को गर्व हो सकता है।
मनोज ने बैंकिंग क्षेत्र के अपने संपर्कों के माध्यम से स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ एक समझौता भी किया जिसमें जिले के 50 से अधिक किसानों ने ऋण, आवश्यक प्रशिक्षण, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया है और खरीद-फरोख्त के साथ अपने दम पर सूअर पालन का काम शुरू करने के बारे में जानकारी प्राप्त की है। पारंपरिक या घर पर शौकिया सूअर पालन ने कभी भी राज्य में औपचारिक क्षेत्र के विकास की अनुमति नहीं दी, लेकिन मनोज इस पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने के लिए दृढ़ हैं। उनका आत्मविश्वास उस सफलता से उपजा है जो उन्होंने अब तक जमा की है। असम सरकार ने भी उनके प्रयासों को मान्यता दी है। कोई आश्चर्य नहीं, वह राज्य के लोगों के लिए असम गौरव हैं।