अपने पारंपरिक फनेक और इन्नाफी में सजी, वह इमा मार्केट में अपने निर्धारित स्थान पर बैठती है। वह जिस समिति का हिस्सा हैं, उससे उसे जो ऋण लिया है, उसने उसे पहाड़ियों से केले, सब्जियों और बेंत से बने उत्पादों की अतिरिक्त खरीद में सक्षम बनाया है। उसे विश्वास है कि वह इमा कीथेल से जो कुछ खरीदा है उसे वह बेचने में सक्षम होगी। यह बाजार अब अपनी अनूठी विशेषताओं के लिए विश्व स्तर पर जाना जाता है। यह महिलाओं और उनके सशक्तिकरण, उनके आत्मविश्वास का प्रतिनिधित्व है, जो पांच सौ वर्षों के समृद्ध इतिहास से उपजा है।
ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार लल्लूप-काबा की परंपरा तब शुरू हुई जब मणिपुरी राजा राज्य की रक्षा के लिए सभी सक्षम मैतेई पुरुषों को सेना में भर्ती कर लेते या दूर-दराज क्षेत्रों में सेना के लिए रसद की आपूर्ति के लिए उनका इस्तेमाल करते। जाहिर है फिर घर चलाने की जिम्मेदारी महिलाओं पर आ गई। वे जमीन जोतने लगीं, कपड़े सिलने लगीं और अपना माल बेचने लगीं। कई लोग कहते हैं कि यह उस चीज की उत्पत्ति थी, जिसे अब इमा कैथल के नाम से जाना जाता है।
मैतेई में, इमा का अर्थ है माँ और कैथल का अर्थ बाजार है। पूरी तरह से महिलाओं द्वारा संचालित यह एशिया का सबसे बड़ा बाजार है। इसे कभी-कभी नुपी कैथल भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है महिलाओं द्वारा संचालित बाजार।
जब अंग्रेजों ने मणिपुर पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया, तो वे कुछ ऐसे कानून लाए, जिन्हें इन महिलाओं का कभी भी समर्थन नहीं मिला। उन्होंने औपनिवेशिक आकाओं के खिलाफ खुद को संगठित किया और नुपी लैन, या महिला आंदोलन नामक विद्रोह का एक बैनर उठाया। स्वतंत्रता के बाद, इस बाजार को व्यावसायिक, सामाजिक और राजनीतिक पहचान और प्रमुखता हासिल हुई। वर्ष 2010 में, इसे इम्फाल नगर निगम द्वारा निर्मित खवैरबंद बाजार में स्थानांतरित कर दिया गया था।
“मुझे यहां व्यापार करना, दूसरों के साथ घुलना-मिलना, लोगों के साथ खुशियों के साथ ही जीवन के अन्य अनुभव साझा करना पसंद है।”
– लोइतोन्गबाम ओंगबी पिशाक माचा
इमा मार्केट के अलिखित कानूनों में से एक यह है कि यहां केवल विवाहित महिला को ही काम करने की अनुमति है। इसमें मातृसत्ता को ही वरीयता दी जाती है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपा गया है। बाजार में 5000 से अधिक महिलाएं कार्य कर रही हैं। उन्होंने खुद को एक प्रकार के संघ में संगठित किया है जो उल्लेखित नियम-कानूनों के माध्यम से बाजार का प्रबंधन करती हैं। यह संघ अपने प्रतिनिधियों को धन उधार भी देता है।
ऐसी ही एक लाभार्थी हैं इंफाल पश्चिम जिले के सगोलबंद सयांग के कोन्थौजम मणितोम्बी। वह कीथेल में बोरी (स्थानीय स्तर पर तैयार सोयाबीन चंक्स) बेचने का काम करती है। यह दुकान उनकी सास ने शुरू की थी। उन्होंने कहा, 10 साल पहले उनके निधन के बाद, मुझे यह दुकान विरासत में मिली। इसने तब से हमें आजीविका प्रदान की है। मैंने बचपन से केथेल के बारे में सुना है। यहां व्यापार करने के कारण मैं पारिवारिक मुद्दों से अपना ध्यान हटा सकी।
क्वाकीथेल की लोइतोन्गबाम ओंगबी पिशाक माचा 2002 से यहां स्थानीय ताजी मछलियां इस बाजार में बेच रही हैं। उनसे पहले उनकी दादी यहां मछलियां बेचा करती थीं। वह कहती हैं, मुझे यहां व्यापार करना, दूसरों के साथ घुलना-मिलना, लोगों के साथ खुशियों के साथ ही जीवन के अन्य अनुभव साझा करना पसंद है। कोविड के दौरान उनका व्यापार काफी प्रभावित हुआ था। वह उस समय के अपने जीवन के सबसे कठिन दौर को भी याद करती हैं, जब बिक्री निचले स्तर पर पहुंच गई थी।
4 जनवरी 2016 को आए भूकंप ने इंफाल को झकझोर कर रख दिया था, बाजार धराशायी हो गया। इसके बाद इसे फिर से बनाना पड़ा। इसकी प्रसिद्धि ऐसी है कि यह न केवल स्थानीय लोगों के लिए एक व्यावसायिक केंद्र है, बल्कि दुनिया भर से आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। इस अवधारणा की सफलता से उत्साहित मणिपुर सरकार ने चुराचांदपुर, उखरूल, जिरीबाम, कांगपोकपी, तामेंगलोंग, सेनापति और चंदेल में ऐसे सात बाजारों का उद्घाटन किया है। 16 मार्च, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुराचांदपुर में बाजार का उद्घाटन किया।
असम में भी इसी तर्ज पर बाजार स्थापित करने का प्रयास किया गया था, लेकिन वे कभी भी इमा कैथल का आकार नहीं ले सका। यही विशिष्टता इसे अनूठा बनाती है।
