असम पर प्रकृति का कहर एक बार फिर बरपा है। लगातार बारिश के कारण भूस्खलन और बाढ़ से हुई तबाही ने हमें एक बार फिर अवांछित स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। बजाली, दरंग और कामरूप जिलों ने अत्यंत गंभीर तस्वीर पेश की, लेकिन कछार और विशेष कर सिलचर शहर में जो जल प्रलय दिखा उसकी तुलना नहीं की जा सकती। बाढ़ और भूस्खलन की यह त्रासदी लंबे समय से असम और उसके लोगों की अर्थव्यवस्था और जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही है। राज्य की उत्तरोत्तर सरकारों और केंद्र के वास्तविक प्रयासों के बावजूद प्रकृति के आगे किसी की एक नहीं चल रही।
डीमा हसाओ में भूस्खलन के बाद का दृश्य प्रकृति के प्रकोप का एक गंभीर पूर्वाभास है। सिलचर शहर की अभूतपूर्व बाढ़ ने चार दिनों की लगातार बारिश के कारण गुवाहाटी को भी जलमग्न कर दिया। चाहे वह मानव निर्मित हो या प्राकृतिक, बहस जारी रह सकती है। निःसंदेह ही इसके लिए समग्र दृष्टिकोण और प्रयास की जरूरत है। हर साल राज्य की कई किलोमीटर जमीन बाढ़ और भूस्खलन की भेंट चढ़ जाती है ऐसे में टुकड़ों में किए गए प्रयास इसके निदान के लिए सही उत्तर नहीं हो सकते। जब इस सरकार ने पिछले साल कार्यभार संभाला था, तब समय पूर्व सक्रियता बरते हुए जल संसाधन मंत्री पीयूष हजारिका बांधों, तटबंधों का निरीक्षण कर रहे थे, बाढ़ नियंत्रण के उपाय कर रहे थे और अधिक अंतर-विभागीय सहयोग का आह्वान कर रहे थे। लेकिन ऐसे प्राकृतिक हमलों का सामना कर रही सरकार बहुत कुछ कर सकती है। हालांकि बाढ़ की इस नयी लहर का पूरा प्रभाव अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन आधिकारिक आंकड़ों में जो सामने आया है, वह बहुत ज्यादा है।
बाढ़ में जान-माल का नुकसान तो दिया ही जाता है, फिर भी सरकार की कामयाबी इस बात पर निर्भर होती है कि उसने पिछले अनुभवों से होने वाले नुकसान को कम करने में कैसे कामयाबी हासिल की। असम में बारहमासी बाढ़ और उसकी पुनरावृत्ति, राज्य को अपनी विकास क्षमता का एहसास करने से रोकती है। एक समन्वित केंद्रीय और राज्य राहत और पुनर्वास उपाय केवल अल्पकालिक दर्द और भूख की पीड़ा को कम
करने के लिए सीमित तरीके से किए जा सकते हैं, लेकिन स्थायी बाढ़ नियंत्रण दृष्टिकोण का कोई विकल्प नहीं है। राज्य और केंद्र की सरकारें बाढ़ और कटाव को कम करने के लिए लघु और मध्यम अवधि की रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, यह महत्वपूर्ण है कि स्थायी समाधान के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति बनाई जाए।
संपादकीय
समय अब स्थायी समाधान का
असम पर प्रकृति का कहर एक बार फिर बरपा है। लगातार बारिश के कारण भूस्खलन और बाढ़ से हुई तबाही ने हमें एक बार फिर अवांछित स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया। बजाली, दरंग और कामरूप जिलों ने अत्यंत गंभीर तस्वीर पेश की, लेकिन कछार और विशेष कर सिलचर शहर में जो जल प्रलय दिखा उसकी तुलना नहीं की जा सकती। बाढ़ और भूस्खलन की यह त्रासदी लंबे समय से असम और उसके लोगों की अर्थव्यवस्था और जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही है। राज्य की उत्तरोत्तर सरकारों और केंद्र के वास्तविक प्रयासों के बावजूद प्रकृति के आगे किसी की एक नहीं चल रही।
डीमा हसाओ में भूस्खलन के बाद का दृश्य प्रकृति के प्रकोप का एक गंभीर पूर्वाभास है। सिलचर शहर की अभूतपूर्व बाढ़ ने चार दिनों की लगातार बारिश के कारण गुवाहाटी को भी जलमग्न कर दिया। चाहे वह मानव निर्मित हो या प्राकृतिक, बहस जारी रह सकती है। निःसंदेह ही इसके लिए समग्र दृष्टिकोण और प्रयास की जरूरत है। हर साल राज्य की कई किलोमीटर जमीन बाढ़ और भूस्खलन की भेंट चढ़ जाती है ऐसे में टुकड़ों में किए गए प्रयास इसके निदान के लिए सही उत्तर नहीं हो सकते। जब इस सरकार ने पिछले साल कार्यभार संभाला था, तब समय पूर्व सक्रियता बरते हुए जल संसाधन मंत्री पीयूष हजारिका बांधों, तटबंधों का निरीक्षण कर रहे थे, बाढ़ नियंत्रण के उपाय कर रहे थे और अधिक अंतर-विभागीय सहयोग का आह्वान कर रहे थे। लेकिन ऐसे प्राकृतिक हमलों का सामना कर रही सरकार बहुत कुछ कर सकती है। हालांकि बाढ़ की इस नयी लहर का पूरा प्रभाव अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन आधिकारिक आंकड़ों में जो सामने आया है, वह बहुत ज्यादा है।
बाढ़ में जान-माल का नुकसान तो दिया ही जाता है, फिर भी सरकार की कामयाबी इस बात पर निर्भर होती है कि उसने पिछले अनुभवों से होने वाले नुकसान को कम करने में कैसे कामयाबी हासिल की। असम में बारहमासी बाढ़ और उसकी पुनरावृत्ति, राज्य को अपनी विकास क्षमता का एहसास करने से रोकती है। एक समन्वित केंद्रीय और राज्य राहत और पुनर्वास उपाय केवल अल्पकालिक दर्द और भूख की पीड़ा को कम
करने के लिए सीमित तरीके से किए जा सकते हैं, लेकिन स्थायी बाढ़ नियंत्रण दृष्टिकोण का कोई विकल्प नहीं है। राज्य और केंद्र की सरकारें बाढ़ और कटाव को कम करने के लिए लघु और मध्यम अवधि की रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, यह महत्वपूर्ण है कि स्थायी समाधान के लिए एक दीर्घकालिक रणनीति बनाई जाए।