राज्य में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या ने मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा सहित कई लोगों की भौंहें चढ़ा दी हैं। उन्होंने इन संख्याओं को कम करने के लिए सड़कों, राजमार्गों से संबंधित अधिकारियों और पुलिस के शीर्ष अधिकारियों के अलावा जिलों के डीसी और एसपी को बुलाया ताकि इस संख्या को कम करने के लिए विचार-विमर्श कर कोई राह निकल सके।
कोई भी मौत अफसोस की बात है, लेकिन जब संख्या हर महीने 250 से अधिक या औसतन हर दिन आठ से अधिक होती है तो इतने भर से काम नहीं चलता। मुख्यमंत्री ने कई जिलों के प्रदर्शन पर आपत्ति जताई और उन्हें यह बताने में पीछे नहीं रहे कि वे नाखुश हैं।
बैठक में जो बात सामने आई वह यह कि 2022 में असम में 7,000 से अधिक दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 2,994 लोगों की जान चली गई। ये दुर्घटनाएं कई कारणों के एक साथ आने या एक ही कारण का परिणाम हो सकती हैं, लेकिन परिणाम हमेशा किसी न किसी प्रकार की त्रासदी ही होता है। अंगों और जीवन की हानि का व्यक्तियों, परिवारों और यहां तक कि राज्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। यह सर्व ज्ञात है कि लापरवाही और नशे में गाड़ी चलाना सड़क पर होने वाली मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है, लेकिन जिसे ‘ब्लैक स्पॉट’ कहा जाता है, उसके आसपास के क्षेत्रों में उचित संकेतों का अभाव भी कुल संख्या में अपना योगदान देता है। इसलिए सीधे तौर पर ड्राइवर या व्यक्ति पर दोष मढ़ना कठोरता होगी।
साथ ही सिर्फ खराब सड़कों को दोष देने भर से समग्र परिस्थिति की अनदेखी होगी। दिलचस्प बात यह है कि बुनियादी बातों की अनदेखी के कारण ही दुर्घटनाएं होती हैं। राज्य के आंकड़े बताते हैं कि 68% दुर्घटनाएं तेज गति से गाड़ी चलाने के कारण होती हैं, 9% से अधिक
दुर्घटनाएं नशे में गाड़ी चलाने के कारण होती हैं, और 3.6% दुर्घटनाएं मोबाइल के उपयोग के कारण होती हैं। सरकार और धर्मार्थ संगठनों के बार-बार अभियान चलाने के बावजूद, यदि वाहन चालक इस तथ्य को नजरअंदाज करते हैं, तो क्या कोई भाग्य और यातायात पुलिस को दोष दे सकता है?