इस बात पर एकबारगी यकीन कर पाना मुश्किल है कि न्यू हाफलॉन्ग रेलवे स्टेशन हाल ही में भयंकर प्राकृतिक आपदा को झेलने के बाद तेज गति से पुनर्निमाण और विकास का साक्षी बन कर एक बार फिर अडिग खड़ा है। यूं तो प्रकृति के आगे हम सब बेबस हैं…मगर जिस गति और अंदाज से पूर्वोत्तर सीमांत (एनएफ) रेलवे ने प्रकृति के कहर को पीछे छोड़ते हुए सामान्य सेवा बहाल की, यह दृढ़ संकल्प और अप्रतिम समर्पण का अद्वितीय उदाहरण है।
न्यू हाफलॉन्ग स्टेशन पर एक चाय स्टाल के मालिक जमील अहमद ने असम वार्ता को बताया, 14 मई को मेरी आंखों के सामने जो कुछ हुआ और उसके बाद की परिस्थितियों को देखने के बाद मुझे लगा था कि मुझे यहां अपना व्यवसाय फिर से शुरू करने में कम से कम एक साल लगेगा। इसबीच, वह एक आने वाली ट्रेन के यात्रियों की सेवा के लिए लंच बॉक्स तैयार करने में व्यस्त थे। अहमद ने उस दिन को याद करते हुए बताया, एक सैलाब की तरह आया। उस वक्त सुबह के करीब 7.30-7.35 बजे थे। हम भाग्यशाली थे कि तब तक गुवाहाटी-सिलचर डाउन पैसेंजर ट्रेन स्टेशन में प्रवेश कर चुकी थी। इलाके के आसपास के स्थानीय लोग युद्धस्तर पर फंसे हुए यात्रियों को राहत पहुंचाने में जुट गए।
स्टेशन के अधीक्षक अनिल कुमार ने कहा, 11 मई को बारिश शुरू हुई थी। मूसलाधार वर्षा हो रही थी। 14 मई को सुबह करीब 11 बजकर 20 मिनट पर ग्रेटर हाफलॉन्ग इलाके से बाढ़ की तरह तेज पानी आया। तेज बहाव में ट्रेन के खड़े पांच डिब्बे तीसरी लाइन से पांचवीं लाइन पर जा गिरे। प्लेटफॉर्म नंबर 2 और नंबर 3 पर 15-20 फीट ऊंचे दो कीचड़ भरे टावर बनाए गए थे। उन्होंने कहा, मैंने यहां अपनी 17 साल की सेवा के दौरान भारी बारिश देखी थी। लेकिन ऐसा कभी कुछ नहीं देखा था। 2013 में, एमजी लाइन पिछले साल की बारिश की तरह बारिश के कारण जबर्दस्त बाधित हुई थी, लेकिन इस बार मैंने जो देखा उसकी तुलना में कुछ भी नहीं है।
दूसरी ओर, 13 मई को हाफलॉन्ग स्टेशन से करीब 280 किलोमीटर दूर एनएफ रेलवे के महाप्रबंधक अंशुल गुप्ता अन्य अधिकारियों के साथ गुवाहाटी स्थित अपने कार्यालय में गहन विचार-विमर्श कर रहे थे। वह और उनकी टीम घटनास्थल से मिल रही सूचनाओं को लेकर चिंतित थी। जीएम गुप्ता को पता था कि यह उस भारी बारिश के ठीक उलट है, जो वह हर साल देखते रहे हैं। गुप्ता ने उन दिनों को याद करते हुए बताया, जब मैंने सेक्शन में कुछ दरारों की खबर सुनी, तो मुझे पता था कि मुझे वहां रहना होगा। पानी का स्तर बढ़ रहा था और मेरी सहज बुद्धि ने मुझे बताया कि ट्रैक सुरक्षित नहीं रहेगा। हमने ट्रेनों की आवाजाही को प्रतिबंधित करना शुरू कर दिया और मैं लामडिंग के लिए रवाना हो गया। मुझे एहसास हुआ कि क्या होने वाला है।
गुप्ता ने कहा, हमने सर्वेक्षण करने के लिए एक धक्का ट्रॉली का इस्तेमाल किया। मैंने अवरुद्ध सुरंगों, एक लटके हुए ट्रैक और कई दरारों को देखा। उनहत्तर स्थान प्रभावित हुए। छह स्थान ऐसे थे, जहां पहाड़ बह गए थे। करीब 3,000 यात्री फंसे हुए थे। नुकसान और बचाव के प्रयास दुनिया भर में रिपोर्ट किए गए थे।
अनुभवी रेलवे दिग्गज उन सभी के आभारी थे जिनके प्रयासों के परिणामस्वरूप कम से कम लोगों की जान गई। उन्होंने इस न्यूजलेटर को बताया, सभी के सहयोग और प्रयासों के कारण बचाव अभियान सफल रहा। इस खंड में एक लाख से अधिक यात्रियों ने रेलवे स्टेशनों पर शरण ली थी। एनजीओ, गुरुद्वारों, व्यक्तियों, संगठनों, सभी ने भोजन और अन्य आवश्यक सामग्री प्रदान करने के लिए सहयोग किया। मैंने ऐसे समय में लोगों की सहायता के लिए विभीषिका के आकलन के लिए मुख्यमंत्री के साथ ट्रेन यात्रा की। मुझे यह स्वीकार करना चाहिए कि रेलवे ने इन व्यक्तियों की गरिमा को बरकरार रखते हुए उनकी सहायता करने के लिए सब कुछ दिया।
तारीख 30 जून। जब 05616 सिल्चर-हाफलॉन्ग पैसेंजर ट्रेन ने हाफलॉन्ग रेलवे स्टेशन तक की दूरी तय की तो चारों ओर जयकारे गूंज उठे। लोगों को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था इसलिए वह आँखें मल रहे थे और खुद को चिकोटी काट यह एहसास दिलाने की कोशिश कर रहे थे कि जो सामने है, वही सच है। आसपास के सबसे आशावादी लोगों को भी यह भरोसा नहीं था कि छह माह के भीतर चीजें बहाल हो जाएंगी। कुमार ने असम वार्ता को बताया, 13 जुलाई तक, लामडिंग-गुवाहाटी पैसेंजर ट्रेन अच्छी तरह से और सही मायने में सेवा में थी, जबकि जुलाई के अंतिम सप्ताह तक रेलवे द्वारा सभी प्रमुख मार्गों पर सेवा दी जा रही थी।
गुप्ता ने बताया, हमने लगभग 150 करोड़ रुपये खर्च किए और सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए और स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों के मद्देनजर कनेक्टिविटी को बहाल करने के लिए सबसे आधुनिक उपकरण और तकनीक का इस्तेमाल किया। हाँ, गति इसकी मूल भावना थी। वास्तव में हमने 42 दिनों का जो लक्ष्य निर्धारित किया था, उसे हासिल कर लिया। हमने इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए अपने सभी ठेकेदारों को तैनात किया।
विस्टाडोम में एक हाउसकीपिंग कर्मचारी दिगंत सैकिया, जिनसे यह लेखक ट्रेन में मिला था, उन्होंने बताया, मैंने अपने जीवन में ऐसा नहीं देखा: न तो इस स्तर की क्षति, न ही इस तीव्रता और गति के साथ बहाल हुई सामान्य स्थिति।
BLURB: हमने लगभग 150 करोड़ रुपये खर्च किए और सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए और स्थानीय भौगोलिक परिस्थितियों के मद्देनजर कनेक्टिविटी को बहाल करने के लिए सबसे आधुनिक उपकरण और तकनीक का इस्तेमाल किया। हाँ, गति इसकी मूल भावना थी। वास्तव में हमने 42 दिनों का जो लक्ष्य निर्धारित किया था, उसे हासिल कर लिया। हमने इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए अपने सभी ठेकेदारों को तैनात किया।