दिन 14 मई, 2021: एक युवक ने 14 साल की बच्ची को सुनसान जगह पर फुसलाकर उसके साथ दुष्कर्म किया। उसने धमकी दी कि अगर घटना के बारे में वह किसी को बताएगी तो उसे गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। 15 मई को लड़की के परिजनों ने जागीरोड थाने में पोक्सो एक्ट 2012 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई। इसके बाद मोरीगांव पुलिस हरकत में आई और युवक को गिरफ्तार कर मामले की जांच शुरू कर दी। घटना के बमुश्किल एक महीने बाद 23 जून को पुलिस ने केस डायरी कोर्ट में जमा कर दी। सुनवाई शुरू होने के लगभग एक साल बाद, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश और विशेष न्यायाधीश (पोक्सो) की अदालत ने 18 जून, 2022 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें आरोपी को 20 साल की कैद और 20,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई।
यह महज संयोग है कि इस घटना के कुछ दिनों पहले ही असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने गृह विभाग से महिला और बच्चों की सुरक्षा को लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतने को कहा था। मुख्यमंत्री के बयान की गंभीरता एक बार फिर दिखी जब वह मोरीगांव के बूढ़ागांव में दुष्कर्म पीड़िता के घर पहुंचे और पीड़िता के परिजनों से मुलकात की। उन्होंने पुलिस को जांच तेज करने के भी निर्देश दिए।
इसी प्रकार, इस साल उनके कार्यालय ने ढेकियाजुली के धूला में एक किशोरी से दुष्कर्म और हत्या मामले में गृह विभाग से दरंग एसपी, एएसपी और धूला थाने के प्रभारी को ड्यूटी में लापरवाही के कारण निलंबित करने का निर्देश दिया था। डॉ. शर्मा अपने कैबिनेट सहयोगियों के साथ पीड़िता के परिजनों से मिलने उनके घर पहुंचे। मुख्यमंत्री ने परिजनों के प्रति सहानुभूति जताई और जल्द न्याय का वादा किया।
पिछले साल सरकार का कार्यभार संभालने के बाद मुख्यमंत्री ने असम के तत्कालीन डीजीपी को पोक्सो और इसके प्रति जागरूकता के लिए संबंधित मामलों पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करने का निर्देश दिया था। एक एनजीओ उत्सव, इस मुद्दे पर काम कर रहा है और बाल अधिकार असम पुलिस की सहायता कर रहा है। उत्सव के संस्थापक मिगुएल दास कहते हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दो और तीन साल के नाबालिग भी शिकार हैं। हम पीड़ितों को जागरूक बनाने और उन्हें और उनके परिवार को न्याय दिलाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। हम शिशु मित्र नामक परियोजना के माध्यम से पोक्सो कानूनों पर पुलिस कर्मियों की सहायता करते हैं। उन्होंने असम वार्ता को सूचित किया कि सामाजिक दबाव नेकई परिवारों को ऐसी घटनाओं को छिपाने के लिए मजबूर किया है। ऐसे में पोक्सो अधिनियम 2012 के बारे में जागरूकता की कमी और परेशानी को बढ़ा देती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के 2020 के आंकड़ों के मुताबिक असम में पोक्सो के तहत 1496 प्राथमिकी दर्ज हुई। वहीं, 2012 में यह संख्या बढ़कर 1926 पर पहुंच गई। इस दिशा में तेजी से काम करने वाले जिलों में बंगाईगांव है। यहां 20 मामले दर्ज हुए जिनमें से 13 का निपटारा हो गया है। बंगाईगांव के पुलिस अधीक्षक स्वपनिल डेका ने कहा कि उनकी टीम तेजी से बिना त्रुटि की जांच पर ध्यान क्रेंदित करती है। इसके साथ ही पीड़ित और उसके परिजनों की सुरक्षा और पीड़िता के लिए मुआवजा पर भी ध्यान दिया जाता है। उन्होंने बताया कि जैसे ही उनकी टीम को शिकायत मिलती है। टीम पीडिता की सुरक्षा और उसके पुनर्वास को सुनिश्चित करती है। उन्होंने बताया कि प्रक्रिया गत कार्रवाइओं में पीड़िता के स्वास्थ्य की जांच, घटना स्थल का मुआयना किया जाता है।जैसे ही अपराधी पकड़ में आता है, हम पोक्सो कानून के तहत आरोपपत्र दाखिल करते हैं।
मिगुएल ने कहा पोक्सो एक्ट के तहत यदि जांच में कोई गड़बड़ी नहीं की गई तो पीड़िता को न्यायमिलेगा ही। उन्होंने हालांकि समाज में और अंशधारकों के बीच जागरूकता पर जोर दिया, जो कि वर्तमान में काफी कम है। उन्होंने कहा, मैं असम के मुख्यमंत्री और डीजीपी का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने इस दिशा में व्यक्तिगत पहल की। मोरीगांव की पुलिस अधीक्षक अपर्णा नटराजन इस कानून के तहत कुछ करने और न करने योग्य कदमों की सूची तैयार की है। उन्होंने कहा, हम पोक्सो कानून को बच्चों का मित्र कह सकते हैं।इस कानून के तहत कुछ ऐसे विशेष कदम है जिसे पुलिस को उठाने हैं। पीड़िता के बयान दर्ज करने से लेकर जांच तक इनका ध्यान रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा, यह सब इस बात को सुनिश्चित करने के लिए है कि पीड़ित बच्ची के भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य से कोई समझौता नहीं हो। उन्होंने बताया, हमारे जिले में हमने एक एनजीओ महिला महफिल के सदस्यों को मनोचिकित्सकों से प्रशिक्षित कराया है।
यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम अधिनियम एक व्यापक कानून है जो बच्चों के हितों की रक्षा करता है। रिपोर्टिंग, साक्ष्य दर्ज करने के लिए बच्चों के अनुकूल प्रणाली सहित, जांच, और विशेष अदालत में तेजी से विचार।
अधिनियम लिंग-तटस्थ है और बच्चे (जिसके तहत कोई भी18 वर्ष से कम उम्र) को प्राथमिकता देता है। बच्चे के सर्वोत्तम हितों और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए यह शारीरिक,मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक विकास को सुनिश्चित करता है। यह कई प्रकार के यौन शोषण के बीच अंतर करता है, जिनमें यौन शोषण, शारीरिक दुष्कर्म और पोर्नोग्राफी हैं।
अधिनियम भारी दंड लगाता है। यह अपराध की गंभीरता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। जिसके तहत अधिकतम जुर्माना और आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है। जीवन कीअधिकतम सजा के साथ कैद होना।