डॉ. हिमंत विश्व शर्मा की सरकार ने एक लाख नौकरी देने के चुनाव पूर्व किए गए वादे के अनुरूप एक बार में 44,000 से अधिक युवाओं को रोजगार देने में कामयाबी हासिल की। मुख्यमंत्री ने नियुक्ति पत्र के औपचारिक वितरण के दौरान यह भी घोषणा की कि आने वाले हफ्तों में सरकार में फिर से 20,000 से अधिक नौकरियों का विज्ञापन भी दिया जाएगा। इसका मतलब है कि महज दो साल के समय में वह मतदाताओं से किए गए अपने वादे को पूरा करने में सक्षम होंगे। असम को राज्य का दर्जा मिलने के बाद से यह एक अभूतपूर्व कदम है। सरकार को निवेश के माहौल को सुगम बनाकर निजी क्षेत्र को ऐसा करने के लिए प्रेरित करना जारी रखना चाहिए, जिससे विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों द्वारा हजारों की संख्या में रोजगार सृजित होते हैं, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि कृषि क्षेत्र में रोजगार सृजन की क्षमता सीमित है।
सरकार का मौजूदा कदम सुखद एहसास कराने वाला है कि हाल ही में एफएमसीजी, पेय और सीमेंट जैसे उद्योगों की एक शृंखला में निजी कंपनियों के साथ 8,000-करोड़ रुपये के समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए हैं। इससे न केवल पूंजी आएगी बल्कि सार्थक रोजगार भी सृजित होंगे।
एक राज्य जिसकी राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता अभी भी सीमित है, उससे नौकरी प्रदाता होने की उम्मीद नहीं की जा सकती है, हालांकि इस तरह की कवायद लोकलुभावन है और आम तौर पर चुनावी लाभांश प्राप्त करती है। लेकिन कोई भी व्यावहारिक राज्य सरकार ऐसे प्रयासों की सूक्ष्मता को जानेगा। भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में जो अर्थव्यवस्था के अहस्तक्षेप मॉडल में विश्वास करता है, यह एक विरोधाभास है। एक ओर, यह माना जाता है कि बाजार को खुली छूट दी जा रही है, जबकि दूसरी ओर, लोक कल्याण के लिए कुछ न कुछ करने की हमेशा आवश्यकता होती है। जबकि राज्य सरकार ने विभिन्न विभागों में रिक्तियों को भरने के लिए अब तक अच्छा काम किया है, यह भी महत्वपूर्ण है कि इसके अधिकांश प्रयास अब उद्योगों और सेवा क्षेत्र के फलने-फूलने के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने पर लक्षित हैं। एक बार यह हो जाने के बाद, इसके लिए कल्याणकारी उपायों को आगे बढ़ाने के लिए स्वतः स्फूर्त धन होगा।