कृषि क्षेत्र को गति के देने के उद्देश्य से असम सरकार ने राज्य में मिलेट मिशन अभियान की शुरुआत की है। मकसद को हासिल करने के लिए राज्य में असम मिलेट मिशन (एएमएम) की स्थापना की गई है। इसका गठन सात साल के लिए किया गया है। इसकी शुरुआत वित्त वर्ष 2022-23 से हुई है।
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में चिह्नित करने के लिए भारत-प्रायोजित प्रस्ताव को अपनाया। भारत सरकार मोटे अनाज और उनकी खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। असम सरकार भी 2023 को सही मायने में मोटे अनाज वर्ष के रूप में मनाने जा रही है। यह मुख्यमंत्री द्वारा तेजपुर में डीसी सम्मेलन में पूर्व में की गई घोषणा के अनुरूप है।
असम मिलेट मिशन की राज्य परियोजना निदेशक रोशनी कोराथी ने कहा कि मिशन के तहत गतिविधियों को उत्पादन, कटाई के बाद, प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और बाजार संबंधों को कवर करते हुए मूल्य श्रृंखला मोड में लिया जाएगा। कोराथी ने कहा, इसका मुख्य लक्ष्य गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिलाओं और बच्चों के पोषण जरूरतों को पूरा करना है। मोटे अनाज अत्यधिक परिवर्तनशील छोटी-बीज वाली घासों का एक समूह है, जो दुनिया भर में व्यापक रूप से चारे और मानव भोजन के लिए अनाज के रूप में उगाया जाता है। एसपीडी के अनुसार मोटे अनाज खराब आहार (कुपोषण से मोटापे तक) में कुछ महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों को संबोधित कर सकता है; मसलन पर्यावरणीय मुद्दे (जलवायु परिवर्तन, पानी की कमी और पर्यावरणीय क्षरण); और ग्रामीण गरीबी।
(मिशन के अधिदेश के लिए बॉक्स देखें)
एसपीडी के मुताबिक मोटे अनाज कई वैश्विक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं मसलन, कुपोषण और मोटापा, पर्यावरण की समस्याएं (जलवायु परिवर्तन व पर्यावरणीय अवनयन) और ग्रामीण गरीबी।
भारत के राष्ट्रीय पोषण मिशन, पोषण अभियान ने भी राज्य सरकारों को बड़े सार्वजनिक प्रणाली वितरण चैनलों जैसे एकीकृत बाल विकास सेवाओं, मध्याह्न भोजन आदि के तहत इन्हें शामिल करने की सलाह दी है।उन्होंने कहा कि प्रारंभिक शिक्षा विभाग और असम सर्व शिक्षा अभियान मिशन के सहयोग से मध्याह्न भोजन योजना में मोटे अनाजों का वितरण किया जाएगा। डॉ प्रणब कुमार महंत, कृषि सलाहकार, एपीएआरटी ने कहा कि असम की जलवायु मोटे अनाजों की खेती के लिए अनुकूल है। असम में उगाए जाने वाले प्रमुख मोटे अनाजों में बाजरा, रागी और ज्वार हैं।
महंत ने कहा, इस फसल को इसकी उत्पादकता और तैयार होने में संक्षिप्त समय के लिए पसंद किया जाता है। उन्होंने कहा कि बाजरा, ज्वार, रागी भी असम में पर्याप्त क्षेत्र में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण फसल प्रजातियां हैं।
उन्होंने बताया कि मोटे अनाजों को स्मार्ट फूड भी कहा जाता है, जो उपभोक्ताओं, ग्रह और किसानों के लिए अच्छा है। यही नहीं, रागी में दूध की तुलना में कैल्शियम की मात्रा तीन गुना होती है, और अधिकांश बाजरा में आयरन और जिंक का स्तर बहुत अधिक होता है, ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, प्रोटीन और फाइबर का अच्छा स्तर होता है और ये ग्लूटेन-मुक्त होते हैं।
महंत ने कहा कि बाजरा में कार्बन फुटप्रिंट कम होता है और यह बहुत कम पानी के साथ गर्म जलवायु में जीवित रह सकता है और बढ़ सकता है। उन्होंने कहा, “वे जलवायु-स्मार्ट हैं और इसलिए चावल और गेहूं की फसलों की तुलना में किसानों के लिए एक अच्छी जोखिम प्रबंधन रणनीति बनाते हैं, जिनके लिए अधिक मात्रा में पानी और उर्वरक की आवश्यकता होती है।
अभियान के तहत रागी या मड़ुआ की फसल के प्रदर्शन के लिए 15 जिलों में व्यवस्था की गई है। विभिन्न समितियों व संस्थाओं को अभियान के प्रभावी कार्यान्यवय के लिए अधिसूचित किया गया है। अभियान की सफलता के लिए अंतरराष्ट्रीय अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (आईसीआरआईएसएटी) , हैदराबाद और भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान (आईआईएमआर), हैदराबाद से तकनीकी सहयोग लिया जा रहा है।