मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत ने मिशन बसुंधरा 3.0 योजना का औपचारिक शुभारंभ किया, जिसका उद्देश्य राज्य के स्वदेशी समुदायों को भूमि अधिकार प्रदान करना है। यह पहल राज्य के स्वदेशी लोगों के अधिकारों की रक्षा करने में एक महत्वपूर्ण कदम है, साथ ही “जाति-माटी-भेटी” (समुदाय, भूमि, आधार-मातृभूमि) के संरक्षण के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराती है।
आधिकारिक कार्यक्रम 20 अक्तूबर को गुवाहाटी के श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र में आयोजित किया गया था। इस अवसर पर मुख्यमंत्री डॉ. शर्मा ने कहा: हमने पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद, असम में स्वदेशी समुदायों को भूमि अधिकार प्रदान करने के मिशन पर काम शुरू किया- यह स्वतंत्रता के 75 वर्षों के बाद किया गया एक अभ्यास है। 2 अक्तूबर, 2021 को मिशन बसुंधरा का जन्म इसी दृष्टि से हुआ। डॉ. शर्मा ने कहा कि इस मिशन को लागू करने के लिए तैयार होने के तुरंत बाद, वह विभिन्न लाभार्थियों से प्राप्त आवेदनों की अभूतपूर्व संख्या देखकर चकित रह गए। आवेदनों की यह प्राप्ति असम में भूमि संबंधी पहलों के राज्य सरकार के प्रयासों को मान्य करती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने मिशन बसुंधरा 1.0 के तहत नौ महीनों में आठ लाख आवेदनों का निपटारा किया। उन्होंने कहा कि लाभों को महसूस करते हुए विशेष रूप से राज्य के स्वदेशी लोगों को भूमि अधिकार प्रदान करने में, असम सरकार ने नवंबर 2022 में मिशन बसुंधरा का दूसरा संस्करण शुरू किया और एक वर्ष के भीतर दो लाख से अधिक स्वदेशी लोगों को भूमि अधिकार दिए। उन्होंने कहा, इस व्यापक मिशन के माध्यम से हमारा लक्ष्य प्राथमिकता समूहों को जल्द से जल्द भूमि स्वामित्व आवंटित करना और विभिन्न भूमि संबंधी सेवाओं में पारदर्शिता लाना है।
मिशन बसुंधरा के लाभों के लिए अर्हता प्राप्त करने या भूमि पट्टा प्राप्त करने के लिए, आवेदकों को 1951 से असम में निवास का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा या यह प्रदर्शित करना होगा कि उनके परिवार की तीन पीढ़ियां 75 वर्षों से राज्य में रह रही हैं। हालांकि, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, चाय जनजाति और पूर्व चाय जनजाति, आदिवासी और गोरखाओं को भूमि के पुत्र होने के कारण इस आवश्यकता से छूट दी गई है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मिशन बसुंधरा 3.0 के तहत, 1971 से पहले के शरणार्थी भी भूमि पट्टे के लिए आवेदन करने के पात्र हैं, लेकिन उनके पास वैध शरणार्थी प्रमाण पत्र (सरकारी एजेंसियों द्वारा जारी) होना चाहिए। उपलब्ध होने वाली सेवाओं पर प्रकाश डालते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि मिशन बसुंधरा 3.0 से स्पष्टीकरण के लिए लंबित मिशन बसुंधरा 2.0 मामलों की समीक्षा, शहरी और परिधीय क्षेत्रों में तर्कसंगत प्रीमियम दरों के साथ वार्षिक पट्टों को आवधिक पट्टों में रूपांतरण का एंड-टू-एंड डिजिटलीकरण, चाय अनुदान भूमि का आवधिक पट्टों में एकमुश्त रूपांतरण, पूर्ववर्ती भूदान और ग्रामदान भूमि का निपटान संभव हो सकेगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षण संस्थाओं, नामघरों, मंदिरों, श्मशान घाटों, कब्रिस्तानों, क्लब हाउस जैसे सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को भूमि पट्टे दिए जाएंगे। भूमि पट्टे जारी करने के लिए मुख्य मानदंड तीन पीढ़ियों की वंशावली है। साथ ही, सोसायटी पंजीकरण प्रमाण पत्र भी उपलब्ध होना चाहिए। दान की गई भूमि के मामले में यदि पिछले 12 वर्षों से कोई आपत्ति नहीं हुई है, तो भूमि को ‘निर्विवाद’ स्थिति में लाया जाना चाहिए और संबंधित संस्था को पट्टा जारी किया जाना चाहिए। भूमि सुधारों के महत्व पर जोर देते हुए, मुख्यमंत्री ने कहा, असम ने डिजिटलीकरण और गैर-कैडस्ट्रल गांवों को कैडस्ट्रल में बदलने सहित भूमि सुधारों की एक शृंखला शुरू की है। इसका उद्देश्य अगले कुछ वर्षों में असम में भूमि पासबुक शुरू करना है। उन्होंने भूमि सर्वेक्षणों में डिजिटल मानचित्रों के कार्यान्वयन की घोषणा करते हुए भूमि दस्तावेज को और अधिक सुलभ बनाने में प्रौद्योगिकी के उपयोग की वकालत की। मिशन बसुंधरा 3.0 पहल चाय, कॉफी और रबर की खेती करने वाले किसानों तक अपनी पहुंच बढ़ाती है, जिससे उन्हें लाभ और वित्तीय सहायता प्राप्त करने में मदद मिलती है। पहले, छोटे चाय उत्पादक बिना स्वामित्व अधिकारों के सरकारी भूमि का उपयोग कर रहे थे, जिससे वे बैंकों से वित्तीय सहायता प्राप्त करने में असमर्थ थे। मिशन बसुंधरा 3.0 के तहत, ये किसान अब उत्पादन बढ़ाने के लिए वित्तीय संस्थानों से ऋण के लिए आवेदन कर सकते हैं।