2 जनवरी का दिन था, मुख्यमंत्री हिमंत विश्वशर्मा ने शाम करीब 7.55 बजे अपने ट्विटर हैंडल पर अपने वो विचार साझा किए जो लंबे समय से उनके दिमाग में चल रहे थे। उन्होंने असम सरकार के कर्मचारियों के साथ-साथ उनके मंत्रिमंडल के विधायकों और मंत्रियों से विशिष्ट तिथियों पर अपने माता-पिता या ससुराल वालों के साथ खुशहाल वक्त बिताने का आग्रह किया और इसके लिए उन्हें दो दिन के विशेष अवकाश की पेशकश की। यह किसी भी राज्य सरकार के शासन में एक अभूतपूर्व कदम था।
इस घोषणा ने मुख्यमंत्री के भावनात्मक पक्ष को उजागर किया वैसे उन्हें आमतौर पर एक सख्त और मेहनती प्रशासक के तौर पर देखा जाता है। सैकड़ों हजारों कर्मचारियों ने करबद्ध होकर उनके इस विचार का स्वागत किया।
घोषणा के बाद की आई मीडिया रिपोर्ट्स और जिन कर्मचारियों ने छुट्टी का लाभ उठा कर अपने परिवार के साथ खुशहाल वक्त बिताया उनमें से कई की आंखों से आंसू छलक पड़े थे और उन्होंने खुद को धन्य महसूस किया।
सीएम हिमंत विश्वशर्मा ने ट्वीट किया कि – ‘मातृ पितृ वंदना’ पहल का उद्देश्य अधिकारियों, विधायकों और मंत्रियों की वर्तमान पीढ़ी को अपने बुजुर्ग माता-पिता के त्याग को स्वीकार करने के लिए ढालना है।
हालांकि, यह एकमात्र ऐसा काम नहीं है जो उनकी सोच को प्रदर्शित करता है। उन्होंने पहले अपनी विलक्षण संकल्पना के आधार पर ही प्रणाम अधिनियम को लागू किया जो राज्य सरकार के कर्मचारियों को उनके माता-पिता या दिव्यांग भाई-बहनों के प्रति जिम्मेदार बनाता है। यदि कोई इस जिम्मेदारी को नहीं निभाता है तो अधिनियम में प्रावधान है कि कर्मचारी के वेतन का एक हिस्सा काटा कर जरूरतमंद माता-पिता और दिव्यांग भाई-बहनों को उनके भरण-पोषण के लिए दिया जा सकता है।
इस अधिनियम ने हीरोन बोरा जैसे लोगों के लिए जीवन को खुशहाल और जीने योग्य बना दिया है।
14 नवंबर, 2020 को नगांव के निज़ पाथोरी में हिरोन और उसके परिवार की जिंदगी में भूचाल आ गया। नागांव के माज़ पाथोरी हाई स्कूल में एक लोअर डिवीजनल असिस्टेंट के रूप में काम करने वाले अपने इकलौते बेटे चंदन बोरा की मौत के साथ ही परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा।
यह तो बस मुसीबतों की शुरुआत थी। उनके बेटे की मौत के कुछ वक्त बाद ही उसी स्कूल में सहायक शिक्षक के पद पर तैनात उनकी बहू अपने अपने पति के सेवा-संबंधित दस्तावेजों के साथ दिमोरुगुरी, नगांव में अपने पैतृक घर चली गई। जबकि अपने पीछे बेटे के मौत का दुख झेल रहे परिवार को बेसहारा छोड़ दिया।
हिरोन को बाद में पता चला कि उनकी बहू ने पारिवारिक पेंशन के अलावा दूसरे फायदे उठाने के लिए भी औपचारिकताएं पूरी कर ली हैं। तभी स्कूल में किसी ने उसे प्रणाम अधिनियम 2019 के बारे में बताया। उन्होंने स्कूल के प्रधानाचार्य से संपर्क किया, जो संस्था के आहरण और संवितरण अधिकारी भी थे। इस पद पर होने की वजह से वही अधिनियम के तहत न्याय मांगने वाले के लिए सक्षम प्राधिकारी भी थे।
असम के मुख्यमंत्री के दिमाग की उपज, प्रणाम अधिनियम 2019 उन बुजुर्गों और दिव्यांगों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है जिनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है। प्रणाम माता-पिता की जिम्मेदारी और जवाबदेही और निगरानी के मानदंडों के लिए एक संक्षिप्त शब्द है।
मुख्यमंत्री हिमंत विश्वशर्मा ने विधेयक को एक अधिनियम में पारित करने के बाद, मीडिया से कहा था,
“हमें बहुत गर्व है कि असम देश का पहला राज्य है जिसने प्रणाम अधिनियम को लागू किया है, जो सरकारी कर्मचारियों की जरूरत के समय में उनके बुजुर्ग माता-पिता और दिव्यांग भाई-बहनों की रक्षा करने का एक प्रयास है। ”
अधिनियम के तहत, यदि प्रणाम आयोग को सूचित किया जाता है कि राज्य सरकार के कर्मचारी के माता-पिता या दिव्यांग भाई-बहनों की उपेक्षा की जा रही है, तो सरकार द्वारा कर्मचारी के वेतन का 10 फीसदी (और असाधारण मामलों में 15 प्रतिशत तक) काटा जाएगा और उसे हकदार यानी माता-पिता या दिव्यांग भाई-बहनों को सौंपा जाएगा। यदि किसी सरकारी कर्मचारी की सेवानिवृत्ति से पहले मृत्यु हो जाती है तो उसके आश्रित और आर्थिक रूप से उपेक्षित माता-पिता और दिव्यांग भाई-बहन, पति/पत्नी/कानूनी उत्तराधिकारी द्वारा प्राप्त अनुकंपा पेंशन से 10 प्रतिशत (और असाधारण मामलों में 15 प्रतिशत तक) का दावा कर सकते हैं। यह अधिनियम असम सरकार के राज्य सार्वजनिक उपक्रमों सहित चार लाख कर्मचारियों के माता-पिता और दिव्यांग भाई-बहनों को संभावित रूप से लाभान्वित करना सुनिश्चित करता है।
हिरोन ने अपना मामला माज पाथोरी हाई स्कूल, नागांव के प्रधानाध्यापक के सामने रखा, जहां से 3 फरवरी, 2022 को स्कूल इंस्पेक्टर (नागांव जिला सर्कल) के कार्यालय में सुनवाई की गई। डीडीओ ने फैसला सुनाया कि 15 नवंबर, 2020 से पत्नी को मिलने वाली अनुकंपा पारिवारिक पेंशन में से हर महीने 15 फीसदी मृतक के माता-पिता को उनके भरण-पोषण के लिए प्रदान किए जाएं।
हिरोन बोरा पूरे असम में कई लोगों में से एक हैं जिनके जीवन को इस अधिनियम ने प्रभावित किया और बेहतर बनाया गया है। एक अन्य लाभार्थी हैं पांडु, गुवाहाटी की नीरादा दास, जिन्हें नगांव के डोलोंग घाट विकास खंड में वरिष्ठ सहायक (लेखा) के पद पर तैनात उनके बेटे विष्णु दास ने नजरअंदाज कर दिया। निरादा को अब अपने बेटे के मासिक वेतन का 10 फीसदी या 7,000 रुपये भरण-पोषण के लिए मिलता है।
इसी तरह पुथिमारी, रंगिया की सागरिका डेका को उनके बेटे सुरेश कमल डेका, जो मत्स्य पालन विभाग में एक कर्मचारी हैं, से मासिक रखरखाव के रूप में 3,000 रुपये मिलते हैं। आयोग के अधिकारियों का मानना है कि बढ़ती जागरूकता के साथ, ऐसे और भी लोग सामने आएंगे जो अपने हक का दावा करने के लिए आगे आएंगे।
प्रणाम आयोग के मुख्य आयुक्त वीबी प्यारेलाल ने असम बार्ता को बताया “प्रणाम आयोग विभिन्न जिलों में अधिनियम को लेकर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करता रहा है। यह संतोषजनक बात है कि इस अधिनियम ने कई आर्थिक रूप से उपेक्षित वृद्ध माता-पिता को उनके अत्यंत जरूरत के वक्त में राहत दी है। हम अब माता-पिता द्वारा दायर शिकायत याचिकाओं की संख्या में लगातार वृद्धि देख रहे हैं।”