असम के कामरूप जिले के छयगांव शहर से तकरीबन पांच किमी उत्तर में स्थित चोलपारा गांव का एक किसान हैं आईनुल हक (46)। चोलपारा गांव वृहत्तर गोरोईमारी क्षेत्र वर्ष अंतर्गत एक कृषि बागवानी वाला इलाका है।
वर्ष 2020 के अक्तूबर माह में, अपने गांव के अन्य साथी कृषकों की तरह, हक ने भी अपनी छह बीघा जमीन में रबी फसल के बीज बोए। बातचीत के दौरान हक ने कहा, मेरे रबी फसल में फूलगोभी, बंधागोभी और विभिन्न प्रकार के स्थानीय बैंगन शामिल हैं। शुरूआत में तो सब अच्छा था,लेकिन एक रात की मूसलाधार बारिश ने न सिर्फ हमारी फसलों को नष्ट कर दिया बल्कि मेरी उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया।
राहत की बात यह रही कि उन्होंने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत अपने रबी फसल के लिए बीमा करवा रखी थी। अपने कठिन दिनों को याद करते हुए इस बारे में उन्होंने बताया, चूंकि मेरा रबी फसल का पीएमएफबीवाई के तहत बीमा कराया हुआ था, इसलिए मैंने नुकसान की भरपाई के लिए आवेदन किया। पूर्ण जांच पड़ताल के बाद, मुझे 4100 रुपए का मुआवजा मिला। यह राशि सीधे मेरे बैंक खाते में डाली गई।
पीएमएफबीवाई एक केंद्रीय प्रायोजित कृषि बीमा योजना है जो वर्ष 2016 में खारिफ में शुरू हुई थी। लागू होने के बाद से ही, यह योजना मौसम के कारण होनेवाले अप्रत्याशित नुकसान के खतरे को कुछ राहत देते हुए कठिन परिश्रम करने वाले इन किसानों के आर्थिक हित की रक्षा में अहम भूमिका निभाई है। वर्ष 2016 से पीएमएफबीवाई असम में भी लागू है। हालांकि, कृषि विभाग ने भी इसके बेहतर क्रियान्वयन के क्षेत्र में कदम उठाए हैं।राज्य के पीएमएफबीवाई नोडल अधिकारी मकिबुर रहमान ने कहा कि इस योजना के तहत अधिक से अधिक किसानों को बीज बोआई से लेकर फसल काटने तक कृषि बीमा सुविधा उपलब्ध कराते हुए फसल संबंधी खतरों से बचाने की व्यवस्था है। रहमान ने कहा,कृषक वर्ग यदि इस योजना के प्रति जागरूकता रखें तथा इसकी विशेषताओं से अवगत रहें तो पीएमएफबीवाई का भरपूर लाभ उठा सकते हैं।
गुबीन मेधी (59) मोरीगांव में लहोरीघाट राजस्व चक्र अंतर्गत बोरीबांधा गांव जो कि जिला मुख्यालय से उत्तर में तकरीबन 12 किलोमीटर दूर है के निवासी हैं। उन्होंने बताया कि गांव के 95 प्रतिशत लोग किसान हैं। मेधी की कृषि गतिविधियां खरीफ ऋतु के साली और बोड़ो धान की फसल तक ही सीमित हैं। मानसून में यह क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित रहता है। मेधी ने बताया, वर्ष 2019 में जब हमने एक जागरूकता शिविर में कृषि विभाग के अधिकारियों से इस योजना के बारे में सुना, तब पता चला कि ये तो हमारे लिए है। वर्ष 2020 में मैंने एक हेक्टेयर साली धान खेती के लिए पीएमएफबीवाई में नामांकन किया किया। मुझे इसका लाभ मिला। उस साल हमारे जिले में आए भीषण बाढ़ में साली धान की फसल पूरी तरह नष्ट हो गई। मैंने पीएमएफबीवाई के तहत मुआवजे के लिए दावा किया और जितना मैंने मांगा था उतना मिल गया। यह बताते हुए उन्होंने कहा, एक हेक्टेयर साली धान फसल के लिए उन्हें 2400 रुपए मिले। पीएमएफबीवाई के साथ यह मेरा पहला अनुभव था। मेधी ने आगे कहा, हम किसान अपनी फसल के लिए मौसम के मिजाज पर निर्भर रहते हैं, ऐसे में अधिक से अधिक किसानों को इस योजना में शामिल होना चाहिए।
मालूम हो कि पिछले साल किसानों की एक हेक्टेयर जमीन की बीमा राशि की असम सरकार की ओर से ही सब्सीडी दी गई थी। चालू वर्ष में, एक हेक्टेयर जमीन में अधिसूचित फसल बोनेवाले किसानों को महज एक सौ रुपए में फसल बीमा की सुविधा मिल रही है। रहमान ने कहा, असम में,पीएमएफबीवाई के तहत अधिसूचित फसल हैं काली दाल, साली धान और खरीफ ऋतु के लिए जूट फसल और ग्रीष्म दलहन, आलू, गन्ना और रबी फसल के तहत राई व सरसों की खेती। इस योजना को बीमा की इकाई के तौर पर गांव पंचायत स्तर पर बीटीआर, काक, एनसीएचएसी जिलों के अलावा असम के सभी जिलों में भी लागू किया गया है। रबी 2021- 22 के निमित्त पांच बीमा कंपनियों को आनेवाले तीन वर्षों के लिए यह काम सौंपा गया है।
अबनी दास (35) सालदह गांव का एक आधी किसान है जिसके पास मिली हुई जमीन है। सालदह बजाली जिला अंतर्गत पाठशाला से तकरीबन सात किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। प्रत्येक मानसून में कालदिया और पहुमारा नदी में आनेवाले भीषण बाढ़, इस गांव के किसानों की मेहनत पर पानी फेर जाता है।
बातचीत के दौरान दास ने कहा, वर्ष 2020 में, मैंने अपनी सात बीघा साली धान की फसल के लिए पीएमएफबीवाई में नामांकन किया। उस वर्ष आए भीषण बाढ़ में मेरे सारी फसल नष्ट हो गई। कल्पना कीजिए कि यदि मैंने पीएमएफबीवाई में बीमा नहीं कराया होता तो मेरी क्या स्थिति होती ? बीमा अधिकारियों तथा कृषि विभाग के प्रतिनिधियों ने मेरे नुकसान का आंकलन किया और मेरे खाते में 14, 850 रुपए जमा कराए।