तोपेश्वर दास के पेशेवर जीवन अधिकांश हिस्सा एक अदालत में अधिवक्ता के तौर पर गुजरा। एक ऐसी जगह जहां न्यूनतम सुविधाएं थीं। वहां बनियादी सुविधाओं का इस कदर अभाव था कि उस पर किसी भी प्रकार से गर्व नहीं किया जा सकता। जैसा कि देश के अधिकांश निचली अदालतों के हालात हैं।
नलबाड़ी समेत असम की अधिकांश निचली अदालतों का आलम यह है कि वहां से काम करना असंभव नहीं भी है तो मुश्किल जरूर है। राज्य की ज्यादार निचली अदालतों में हर साल जिस परिमाण में केसों की संख्या बढ़ रही है, उस गति से वहां ढांचागत सुविधाओं का विकास नहीं हुआ है।
न्याय तक अधिकाधिक लोगों की पहुंच को तकनीक के माध्यम से बढ़ाने के उद्देश्य से 2007 में राज्य में शुरू हुआ ई-अदालत समन्वित मिशन अभियान भी धरातल पर अक्षरशः लागू नहीं हो पाया।
उन्होंने कहा, अदालत में हमारे पास स्थान की भारी कमी है। वर्तमान में नलबाड़ी शहर में कार्यकारी और न्यायिक कामकाज एक ही इमारत से संचालित हो रहे हैं। वहीं, जिला पोस्को अदालत का कामकाज एक किराये के मकान से संचालित हो रहा है।
उन्होंने बताया कि आलम यह है कि फोटोकॉपी मशीन तक की सुविधा नहीं है। हालांकि सरकार ने जिला अदालत के स्थायी भवन के लिए जमीन आवंटित कर दी है मगर निर्माण का काम अभी पूरा होना शेष है। दास राज्य के उन हजारों अधिवक्ताओं में से एक हैं जिन्हें हाल ही में मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा की ओर से राज्य के न्यायिक ढांचे के विकास के लिए 300 करोड़ की घोषणा से काफी खुशी मिली है। उन्होंने कहा, नलबाड़ी की सीजेएम अदालत में अच्छी वीडियो कान्फ्रेंसिंग की सुविधा का होना अत्यावश्यक है। पुलिस निगरानी अदालत के मालखाना में सीमित जगह है। लेकिन अब केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा फंड दिए जाने से अब इस दिशा में सुधार की उम्मीद है।
दास ने बताया कि कोविड-19 के दौरान नलबाड़ी कोर्ट में डिजिटल सुविधाओं के अभाव के कारण बड़ी मुश्किलें पैदा हुईं।
जोरहाट बार एसोसिएशन की सचिव शेवाली गोगोई दत्ता के भी दास के समान ही विचार हैं। हालांकि उन्होंने राज्य सरकार की ओर से हाल ही में न्यायिक ढांचे में बुनियादी सुधार के लिए घोषित निवेश का स्वागत किया। उन्होंने असम वार्ता को बताया, जिला अदालत में हमारे पास ई-लाइब्रेरी की सुविधा नहीं है। अदालत की इमारत में जगह की कमी हमेशा बनी रहती है। अधिकांश अधिवक्ता ढंग से बैठ तक नहीं पाते। दत्ता के मुताबिक जोरहाट जिला अदालत में 450 अधिवक्ता पंजीकृत हैं मगर इसकी क्षमता 250 अधिवक्ताओं के बैठने की ही है। उन्होंने कहा, लंबित मामलों की संख्या दिनोंदिन बढ़ रही है। रिक्तियों को भरने और लंबित मामलों को निपटाने की आवश्यकता है। यहां तक की एमएसीटी अदालत भी सीमित मानव संसाधन के कारण काम नहीं कर पा रही।
मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत विश्व शर्मा ने गुवाहाटी में आयोजित असम, नगालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम बार काउंसिल की हिरक जयंती समारोह में कहा की कि उनकी सरकार राज्य में न्यायिक ढांचे में सुधार के लिए 300 करोड़ का निवेश करेगी। इतनी ही राशि केंद्र की ओर से भी प्रदान की जाएगी। उन्होंने कहा, न्यायिक मामलों के तेजी से निपटारे के लिए निचली अदालतों में 100 पद भरे जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग अब प्रैक्टिस नहीं कर रहे, राज्य सरकार उनके लिए विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं पर विचार कर रही है।
इस मौके पर केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू, सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस सुधांशु धुलिया और गौहाटी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस आरएम छाया मौजूद थे। मुख्यमंत्री ने बार काउंसिल को 60 साल पूरे होने पर बधाई दी।
कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अरूप कुमार गोस्वामी, तेलंगाना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस उज्जवल कुमार भुयां, विभिन्न हाईकोर्ट के जज और पूर्व जज, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा और बार काउंसिल ऑफ असम, नगालैंड, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के चेयरमैन जीएन साहेवाला उपस्थित रहे।
साहेवाला ने कहा, असम की अधिकांश निचली अदालतों में जगह की समस्या है। यहां तक कि बार के पास अपने सदस्यों को बैठाने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं है।
इसी दिन डॉ. शर्मा ने गौहाटी हाईकोर्ट के म्यूजियम केउद्घाटन समारोह में शिरकत की। इसका निर्माण हाईकोर्ट के पुराने परिसर में होना है। इसमें भारतीय संविधान की हस्तलिखित प्रति, अवकाश प्राप्त और पूर्व जजों के गाउन और विग, लिथो मशीन इत्यादि प्रदर्शित किए जाएंगे।
न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास को 9000 करोड़ आवंटितः रिजिजू
केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि केंद्र सरकार ने हाल ही में देश के न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 9000 करोड़ का आवंटन किया है। उन्होंने असम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और सिक्किम बार काउंसिल के हिरक जयंती समारोह का उद्घाटन करते हुए कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सलाह पर विभिन्न हाईकोर्ट में जजों की रिक्तियों की समस्या का समाधान करेगी। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए कार्यकारी और न्यायिक स्तर पर कई प्रक्रियाओं का पालन होता है। इसके तहत कई सांविधानिक प्राधिकारों से अनुमति भी लेनी होती है।
रिजिजू ने कहा, देश में लंबित मामलों की संख्या पांच करोड़ के करीब है। दर्ज होने वाले मामलों की संख्या निपटान से अधिक है।