1980 की बात है। शिलांग की एक अज्ञात पहाड़ी पर सीमांत दास ने पहली बार प्रतिबंधित पदार्थ का सेवन किया। लगभग एक महीने के भीतर वह पूरी तरह से इसका आदी हो गया था। 15 वर्षों के बाद उसने गुवाहाटी में डॉ चिरंजीब काकति द्वारा संचालित एक पुनर्वास केंद्र में अपना नामांकन कराया और इससे छुटकारा पाने में कामयाब रहा, लेकिन उनकी मुसीबतों का सिलसिला इतनी जल्दी खत्म होने वाला नहीं था। वह इस दौरान शराब पीने लगा। अब उसने गुवाहाटी शहर के बीचोबीच स्थित उलुबाड़ी में अपना घर और एक गोदाम भी बेच दिया और गुवाहाटी रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म पर रहने लगा।
अब उसमें आत्मघाती प्रवृत्ति पनपने लगी, लेकिन मृत्यु के भय और जीवन के प्रति ललक ने उसे वर्ष 2000 में डॉ काकाति की शरण में वापस ला दिया। सीमांत ने कहा, इस उथल-पुथल भरे दौर में, मैं अक्सर उस नरक पर विचार करता था, जिसमें मैं था। चलती ट्रेन के आगे कूदने का मन बना लेता था। लेकिन किन्हीं कारणों से मैं ऐसा नहीं कर सका।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने सीमांत जैसे युवाओं को अंधेरी राह में कदम बढ़ाने से रोकने के लिए देश भर में एक जागरूकता अभियान नशा मुक्त भारत अभियान (एनएमबीए) शुरू किया है। उन्होंने असम वार्ता को बताया, यह अभियान समय की मांग है। ड्रग्स ने मुझे शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया था। उन्होंने कहा, यदि आप शुरुआत में ही उसे नहीं रोकते तो बाद में यह जटिल बन जाता है। वह अब शहर में अपने संगठन ‘सोब्रीटी फाउंडेशन’ के माध्यम से शराब, ड्रग्स और मादक द्रव्यों के सेवन के खिलाफ एक अभियान की अगुवाई कर रहे हैं।
एनएमबीए की देश भर में 15 अगस्त, 2020 को 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में गृह मंत्रालय के तहत नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा पहचाने गए 272 जिलों में शुरुआत हुई। 272 जिलों में से नौ असम के हैं, कछार, धुबड़ी, हैलाकांदी, कामरूप, कामरूप (महानगर), करीमगंज, नगांव और उदालगुड़ी।
असम में इसकी शुरुआत धीमी रही है, लेकिन राज्य में कुछ ऐसे जिले भी हैं जो लड़ने की इच्छाशक्ति दिखा रहे हैं। दास ने कहा, इस कार्यक्रम को युवाओं के लिए पेश किया जाना चाहिए और स्कूल स्तर पर पाठ्यक्रम में इसे स्थायी प्रभाव के लिए शामिल किया जाना चाहिए।
आंकड़ों के मुताबिक असम में 20.4 लाख मादक पदार्थ सेवन करने वाले हैं। उनमें से 8.05 लाख अफीम का उपयोग कर रहे हैं, 6.3 लाख गांजा का उपयोग कर रहे हैं, जबकि 3.4 लाख बार-बार इनहेलेंट के उपयोगकर्ता हैं और 2.4 लाख दर्द निवारक दवाओं का उपयोग करते हैं। चिंताजनक बात यह है कि इनमें से 3.3 लाख से ज्यादा नशेड़ी बच्चे हैं। मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस रिपोर्टर को बताया कि जो बात हैरान करने वाली है, वह यह है कि ड्रग्स का सेवन करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ती जा रही है।
कामरूप (एम) एडीसी कल्पना डेका ने इस पहल को युक्तिसंगत बताते हुए कहा कि पुनर्वास अभियान से अधिक, लोगों को जागरूक करने का काम महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, हम अभियान के तहत प्रमुख क्षेत्रों पर काम कर रहे हैं। एक मादक द्रव्यों के सेवन करने वाले को मुख्यधारा में वापस लाना है, दूसरा, जो मुझे लगता है कि अधिक महत्वपूर्ण है, वह है मादक द्रव्यों के सेवन के प्रभाव के बारे में युवाओं में जागरूकता पैदा करना। उन्होंने बताया कि इस प्रक्रिया में शीर्ष मनोचिकित्सक, कलाकार, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडिया पेशेवरों को शामिल किया गया है।
मनिन्द्र अधिकारी, जिला समाज कल्याण अधिकारी, ग्वालपाड़ा ने असम वार्ता को बताया कि एनएमबीए अभियान के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए स्कूलों और कॉलेजों का उपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा, हमने इस विषय पर विशेष रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में जागरूकता पैदा करने के लिए 27 और 28 जून को एक रथ यात्रा का आयोजन किया। कामरूप मेट्रोपॉलिटन जिले में, उत्तरन वेलफेयर फाउंडेशन, एक गैर सरकारी संगठन को गैर सरकारी संगठनों, स्वयंसेवकों और यहां तक कि सरकारी कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए लगाया गया है।
राज्य सरकार ने समय-समय पर लोगों को इसकी गंभीरता से अवगत कराया है। हाल ही में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री पीयूष हजारिका ने गुवाहाटी में एक पुनर्वास केंद्र की स्थिति पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने ऐसे केंद्रों को चलाने वाले हितधारकों की एक बैठक भी बुलाई और उन्हें केंद्रों को व्यवस्थित करने का निर्देश दिया।
नशीली दवाओं के तस्करों के खिलाफ लगातार अभियान के फलस्वरूप पिछले एक साल में 655.40 करोड़ रुपये प्रतिबंधित पदार्थों की जब्ती हुई है, जबकि 1 अगस्त, 2021 से 31 अगस्त, 2022 तक 13 महीनों में 4,750 व्यक्तियों की गिरफ्तारी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि नशीली दवाओं के तस्करों और उपयोगकर्ताओं के खिलाफ अभियान के साथ जागरूकता का प्रयास ही वांछित उद्देश्यों को हासिल करने में सफलता दिला सकते हैं। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, एक के बिना दूसरा (लंगड़ा) अधूरा है।