वर्ष 1970 की एक शाम। मनोबाला बूढ़ागोहाईं शिवसागर के मेजेंगा स्थित अपने घर के आंगन में सूत कात रही थी। वहीं, खेल रहा छोटा पबित्र अपनी गेंद लेने के लिए करघे पर कूद गया। उसे ऐसा करते देख मनोबाला ने उसे गेंद लेने के बाद करघे को सम्मान देते हुए उसे प्रणाम करने को कहा। यह था करघा, धागा और बुनाई प्रक्रिया से सीधे तौर पर जुड़ा उसका संबंध। एक ऐसा संबंध जिससे उसने सफलता की कई कहानियां लिखीं। उस वक्त तो वह इतना छोटा था कि उसने कल्पना भी न की होगी कि आनेवाले दशक में, यही सूत (धागा) एक ऐसे करघे से जोड़ेगी, जो उसे एक औद्योगिक स्तर पर पहुंचा देगा।
शुरुआत में उसकी शिक्षा दीक्षा उसके पिता द्वारा हुई जो मेजेंगा हाई स्कूल में शिक्षक थे। पबित्र ने मैट्रिक की परीक्षा भी वहीं से पास की। वाणिज्य संकाय से स्नातक पबित्र ने गौहाटी विश्वविद्यालय से एमबीए किया और चार साल तक काम किया। असम वार्ता से बातचीत में मृदुभाषी उद्यमी ने कहा, मैं दूसरों के लिए काम करने में इच्छुक नहीं था। मैं स्वयं अपना काम करना चाहता था, लेकिन कोई अनुभव नहीं था। एक दिन मैंने एक कारखाने का दौरा किया। करघे का वह वाकया एक बार फिर जैसे मेरी आँखों के आगे घूम गया। यह मेरे लिए मानो एक प्रेरणादायी क्षण था।
अपने जिले के ग्रामीणों की बुनाई के बारे में उसकी शुरुआती धारणा कुछ ऐसी थी जिसमें घनत्व का अभाव, रंग छोड़ने वाले निम्न स्तर के धागों ने उसे यह सोचने को मजबूर किया कि आखिर वह क्या करना चाहता है। इस तरह वर्ष 2001 में आयातित मशीनों तथा बीआईएस(ब्रिटिश मानक संस्थान) मानकों के साथ ओरिएंट प्रोसेसर्स लिमिटेड की स्थापना हुई। उन्होंने बताया, यह इकाई बुनाई के बाद कपास के धागों में पक्का रंग करने के लिए काम करती है। यह विचार मुझे तब आया, जब मैंने इन समस्याओं को समझा। इस क्षेत्र के लिए योगदान करने के जज्बे ने मेरी उद्यमशीलता को बढ़ावा दिया। वर्ष 2009 में, उन्होंने सूत को रंगने के लिए इटली, जर्मनी और अमेरिका से मशीनें मंगवाईं । इसी के फलस्वरूप उनके ब्रांड को रामधेनु कहते हैं।
कपड़ों की गुणवत्ता को लेकर वे इस कदर दृढ़ हैं कि अपने ही परिसर में अत्याधुनिक प्रयोगशाला होने के बावजूद नमूनों को परीक्षण के लिए नियमित रूप से साउथ इंडिया टेक्सटाइल रिसर्च एसोसिएशन (सिट्रा) की प्रयोगशाला में भेजे जाते हैं। इसे देश में बेहतरीन माना जाता है।
गुणवत्ता की जांच के स्तर को बरकरार रखते हुए, ओरिएंट प्रोसेसर ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। बूढ़ागोहाईं ने कहा , गुणवत्ता ही उनका हॉलमार्क है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं, उन्होंने अपनी कंपनी के विकास और संबंधित सभी पक्षों को खुश रखने की सभी व्यवस्था कर रखी है। उनमें से एक हैं निराला बोड़ो। रिपोर्टर से बातचीत में उन्होंने कहा,” यहां माहौल खुशनुमा है। प्रबंधन हमारा ध्यान रखता है। यहां तक कि हमें बिहू और दुर्गा पूजा के मौके पर यानी साल में दो बार बोनस मिलता है। उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी ने पूर्वोत्तर के बुनकरों नियुक्त कर रखा है जो विभिन्न जनजातियों के बुनी हुई सामग्रियां भारत के साथ ही विदेशों में भी भेजती है। उन्होंने कहा, इस क्षेत्र के लोगों के लिए हथकरघा और वस्त्र उद्योग केवल एक आर्थिक गतिविधि नहीं है बल्कि यह तो पूर्वोत्तर के लोगों की सांस्कृतिक लोकाचार में बसा हुआ है। इसका एक कलात्मक महत्त्व है क्योंकि हमारे बुनकर कोई सामान्य कर्मचारी नहीं हैं। वे कलाकार हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि क्षेत्र के आर्थिक विकास को मजबूत करने के लिए यह बेहद जरूरी है कि अगली पीढ़ी इसे मुहिम के तौर अपनाएं।
उनके उत्पाद अथवा उनके उत्पाद से बनी सामग्रियों की न सिर्फ भारत बल्कि विदेशी बाजारों में भी काफी मांग है। उनके कारखाने में तैयार धागों से बने पर्दे और अन्य सामानों का अरुणाचल प्रदेश स्थित एक फार्म से यूरोप में निर्यात होता है। उसी तरह ओरिएंट कॉटन से बने तौलियों ने भी मेघालय से जर्मनी तक का सफर तय किया है। उनका कहना है, इन्हीं कहानियों ने हमारा हौसला बढ़ाया है और इसी के बल पर हम आगे बढ़ रहे हैं। वहीं, फार्म के मार्केटिंग अधिकारी पंकज शर्मा ने कहा कि तकनीक का उपयोग हमारी उत्तरोत्तर विकास का एक प्रमुख कारण है। पूर्वोत्तर के फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रीज के तीन बार अध्यक्ष रहे शर्मा ने कहा कि हमारे कपड़े अजो (हानिकार रसायन) रहित होते हैं । इसका अर्थ है कि यह हमारे शरीर और त्वचा के अनुकूल होता है। इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता।
वर्ष 1999 में ओरिएंट प्रॉसेसर्स प्राइवेट लिमिटेड से शुरुआत कर यह कंपनी ओरिएंट स्पून सिल्क एंड प्रोसेसिंग मिल्स तथा 2017 में ओरिएंट निट फैब प्राइवेट लिमिटेड जो कि ऑर्फेब नाम से 2020 से कपड़े निर्यात करती है। एक ही परिसर में वस्त्र उद्योग की सभी आवश्यक इकाइयों को समेटकर उद्यमी ने एक लंबा सफर तय किया है। एक धागे (सूत) से शुरू हुए इस सफर में आज न सिर्फ कई धागे और जुड़ गए हैं, बल्कि इसने वो मुकाम हासिल कर लिया है जिसपर पूरे क्षेत्र को गर्व है।