नीति आयोग द्वारा जारी हालिया चर्चा पत्र में 2014-15 से 2022-23 तक पिछले नौ वर्षों में 80 लाख व्यक्तियों की बहुआयामी गरीबी को कम करने में असम की उपलब्धि की सराहना की गई है। साथ ही इसमें कहा गया है कि देश में करीब 25 करोड़ लोगों को इस जाल से बाहर निकाला जा चुका है। एमपीआई स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर में अभावों को मापता है और इन तीन आयामों को समान महत्व देता है।
गरीबी के खिलाफ अथक अभियान के लिए असम सरकार, विशेषकर वर्तमान सरकार की सराहना की जानी चाहिए। कल्याणकारी योजनाओं की संख्या तेजी से बेहतर मानव विकास संकेतकों की शृंखला में जुड़ रही है, चाहे वह शिक्षा हो या स्वास्थ्य। सहमत हूं कि गरीबी सूचकांक जैसे किसी भी बहुआयामी सूचकांक के साथ, अधिकांश आर्थिक संकेतकों के मामले में दो राय हैं, लेकिन श्रेय भी वहीं दिया जाना चाहिए जहां यह उचित है।
यह भी महत्वपूर्ण है कि जहां शेष देश कोविड-प्रेरित सुस्ती या नकारात्मक विकास के दौर में संघर्ष कर रहा था, वहीं सरकार की नवोन्वेषी नीतियों की बदौलत असम इस परंपरा को मात दे रहा था। बढ़ता जीएसटी संग्रह, बढ़ती राज्य जीएसडीपी, निवेश में उछाल आदि सभी एक बेहतर अर्थव्यवस्था की ओर इशारा कर रहे हैं। इससे सरकार को सार्वजनिक व्यय को बढ़ावा देने और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को शुरू करने की अनुमति मिली है, जो फिर से गरीबी को हराने के लिए एक उपाय है। पिछले दो वर्षों में राज्य सरकार एक लाख से अधिक युवाओं को सरकारी नौकरियों में नियुक्त करते हुए हजारों करोड़ रुपये का निजी निवेश आकर्षित करने में सफल रही है। ये सभी मिलकर नीति आयोग के नवीनतम निष्कर्षों को सही ठहराते हुए तत्कालीन सरकार की सकारात्मक छवि पेश करते हैं।