वह तब महज पांच साल का था। असम के सबसे प्रसिद्ध कलाकारों में से एक प्रणब बरुआ ने नगांव के बीचों-बीच अपना रूप रंग स्कूल ऑफ ड्रॉइंग एंड पेंटिंग खोला था। बच्चे की मां, क्षमा दास ने पेंटिंग या ड्राइंग के बारे में कुछ सीखने के लिए अपने बेटे का स्कूल में दाखिला कराया। वह विलक्षण बच्चा जिसने एक शीर्ष कलाकार के संरक्षण में पेंट, ब्रश और कागजों को महसूस करना शुरू कर दिया था, बाद में सबसे बड़े पेंटब्रश का उपयोग कर चित्र बनाने के लिए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड धारक बन गया। वह लड़का था सुजीत दास।
दास ने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहा, मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार का बेटा हूं। मेरे पिता कामाख्या चंद्र दास ने विश्वनाथ मिष्ठान भंडार की शुरुआत की, जिसे नगांव में दूसरी मिठाई की दुकान कहा जाता है। मुझे मेरे पिता ने बताया था कि लोकप्रिय गोपीनाथ बरदलै भी ग्राहक थे। जब व्यापार बंद हो गया, तो हमने अपने घर के बगल में कृष्णा सिनेमा हॉल के पास एक साइकिल स्टैंड खोला। मेरी पहली कमाई वहीं से हुई: ₹1। मैंने अपनी पहली कमाई से रंग और पेंटिंग ब्रश खरीदे।
दास ने असम वार्ता को बताया, असम के लघु और लोक चित्र कला के क्षेत्र में वह एक प्रसिद्ध व्यक्ति थे। 1995 में मेरे गुरु प्रणब बरुआ ने हमें चित्र भागवत के दो चित्र दिखाए और वहां से कोई दो चित्र बनाने के लिए कहा। वहीं से मैंने प्रेरणा ग्रहण की। जल रंग तब मुख्यधारा में नहीं था और न ही लघु चित्रों के लिए इसका व्यापक उपयोग था। हालांकि, समय के साथ, मैंने विभिन्न पुस्तकों के माध्यम से इसके बारे में अधिक अध्ययन करना शुरू कर दिया और इससे परिचित हो गया।
अपने कॉलेज के दिनों में जेब खर्च के लिए उन्होंने रिक्शा के पिछे भी चित्र बनाए। इसके अलावा वे किताबों के आवरण, कॉमिक्स और अखबार के लिए भी काम करते रहे। उन्होंने बताया, मैं गांव के कोने मैं असम के ग्रामीण जीवन को समझने के लिए गांवों के गली-कूचों में घूमा करता था जिसने लोक कला और लघु चित्रकारी को प्रेरित किया। इस बीच, मैं मुखौटा कलाकार देवकांत हजारिका के संपर्क में आया और उनसे मुखौटा बनाने और पांडुलिपियों को समझने में रंगों और सामग्री के उपयोग के बारे में सीखा। कुछ ही समय में, मुझे एहसास हुआ कि सत्रिया संस्कृति मेरे अस्तित्व का हिस्सा बन चुकी है। उन्हें संस्कृति मंत्रालय के संस्कृति संसाधन और प्रशिक्षण केंद्र से पांडुलिपि और हस्तलिखित कार्यों जैसे कालिकापुराण, हरिवंशपुराण, चित्र भागवत और भागवत में शामिल विभिन्न कलाकृति पर शोध करने के लिए एक फेलोशिप भी मिली।
उनके विविध अनुभव ने उन्हें भारत के विभिन्न राज्यों और दुनिया भर में अपने कार्यों को प्रदर्शित करने और सत्रिया कला रूपों पर कार्यशालाओं का संचालन करने में मदद की है। दुबई से शुरू कर उन्होंने रूस, कंबोडिया, मिस्र, इंडोनेशिया, सिंगापुर, चीन, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल और अन्य यूरोपीय देशों में अपने कार्यों का प्रदर्शन किया है। उन्होंने कहा, मेरा सबसे यादगार अनुभव रूस में था। भारतीय कला और सस्कृति के विभिन्न रूपों के प्रति रुसियों में आमतौर पर झुकाव होता है। उन्होंने कला के इस रूप का बड़ी गर्मजोशी के साथ स्वागत किया।
कलाकार चंपक बोरबोरा सुजीत की तारीफ करते हुए कहते हैं, मैं उन्हें बचपन से जानता हूं। उनकी असाधारण एकाग्रता उल्लेखनीय है। बहुत कम उम्र में वह असम की लघु चित्रकारी को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक ले गए। उन्होंने असम वार्ता को बताया, उन्होंने अपनी कला के विस्तार और संवर्धन के लिए एक कला विद्यालय खोलकर परंपरा को संरक्षित करने के लिए एक महान पहल की है।उन्होंने कहा, परम पावन दलाई लामा से लेकर ड्यूक ऑफ कैम्ब्रिज प्रिंस विलियम और केट मिडलटन उन लोगों में से हैं, जिन्होंने उनकी कला की सराहना की है। उन्होंने कहा, मुझे विश्वास है कि सत्रिया, ताई, राजघरिया (रॉयल) और लोक-कला रूप दुनिया भर में अपनी जगह बनाएंगे।
बोरबोरा ने कहा, जब उन्हें अन्य देशों की यात्रा के बाद पहचान मिलना शुरू हुआ, तो दास ने इस तरह की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा की विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता महसूस की। तब उन्होंने एक आर्ट विलेज के विचार की कल्पना की जिसे उन्होंने अपने निवास में स्थापित किया। यह राज्य में निजी तौर पर आयोजित सबसे बड़ी आर्ट गैलरी और संग्रहालय है।
कलाकार ने कहा, लगभग 15 साल पहले जब मैंने एक आर्ट विलेज का सपना देखा था, मेरे पास पैसे नहीं थे। सरकार के संरक्षण के बिना इस तरह की एक परियोजना की कल्पना नहीं की जा सकती थी। हालांकि मैंने अपनी सारी बचत समाप्त कर दी, एक बैंक से ऋण लिया और 14 मार्च, 2021 को दूसरे कोविड के प्रकोप के बीच हम जनता के लिए आर्ट विलेज खोलने में कामयाब रहे।
आर्ट विलेज में विभिन्न देशों की अमूल्य लघु चित्रकला, मूर्तिकला, कठपुतली और मुखौटे, एक अहोम युग की नाव, ब्रिटिश काल के अवशेष और द्वितीय विश्व युद्ध के अवशेष हैं, इसके अलावा एक तल सत्रिया संस्कृति के अभ्यास और चर्चा के लिए समर्पित है। आर्ट विलेज की दीवारों को लोक चित्रों जैसे खुसमोरा लघु चित्रकारी, चाय जनजातियों के कला रूपों आदि से सजाया गया है। आर्ट विलेज का विषय- असम का ग्रामीण जीवन है। नई पीढ़ी की क्षमता में विश्वास करने वाले सुजीत दास नई प्रतिभाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं।