वर्षगांठ का जश्न सबके लिए उत्साह का मौका होता है। इस जश्न में बीते वक्त की उपलब्धियों की झलक साफ दिखाई देती है। मुख्यमंत्री हिमंत विश्वशर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार भी असम में अपनी सत्ता की पहली वर्षगांठ मना रही है। इस बीच गुवाहाटी निकाय चुनाव में सहयोगी दल एजीपी को मिली जीत से असम सरकार की पहली वर्षगांठ के जश्न की खुशी चार गुना बढ़ गई है।
इस बीच यह बात माननी होगी कि मौजूदा सरकार और उसके मुखिया सीएम हिमंत विश्वशर्मा लोगों के बीच पहुंचे और जमीनी स्तर पर उनकी समस्याओं को सुना व उनके हित में फैसले लिए। यह कदम उन्हें समाज के अंतिम व्यक्ति से जोड़ता है। दिसपुर और अन्य जिलों में साप्ताहिक कैबिनेट बैठकों का आयोजन उनका जनता के लिए काम करने के जज्बे को दर्शाता है।
हिमंत विश्वशर्मा सरकार ने जब कुर्सी संभाली थी तब कोरोना महामारी की दूसरी लहर के काले बादल सिर पर मंडरा रहे थे। फिर भी, असम ने अपने जीएसडीपी में दोहरे अंकों की वृद्धि दर्ज कर राष्ट्रव्यापी मुकाम हासिल किया। इस वृद्धि ने असम सरकार को एनआरएल में अपने निवेश को 12.35% से बढ़ाकर 26% करने में मदद की। बिजली क्षेत्र में सुधार से सरकारी राजस्व में वृद्धि होने लगी। मुख्यमंत्री ने अपना दृढ़ संकल्प दिखाते हुए सूक्ष्म वित्त ऋण माफी की सौगात लोगो को दी। इससे राजकोषीय नुकसान की आशंका थी लेकिन मुख्यमंत्री ने अर्थव्यवस्था में पूरा
विश्वास दिखाया। इसके अलावा हिमंत सरकार ने राज्य में नशीले पदार्थों व पशु तस्करी पर नकेल कसने के लिए कई जरूरी कदम उठाए और इसके नतीजे आज सबके सामने हैं। उग्रवाद को खत्म करने की प्रतिबद्धता भी साफ दिख रही है। 23 जिलों से पूरी तरह से और एक जिले से आंशिक रूप से सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को हटा लिया गया है। अपने पड़ोसियों के साथ जुड़ने के प्रयासों का भी फल मिला है। ऐतिहासिक सीमाओं के बावजूद भी बहुत कुछ हासिल किया गया है। सत्ता में आने के लिए एक लाख रोजगार देने के वादे को पूरा करने की दिशा में भी यह सरकार आगे बढ़ रही है। इन सबके बावजूद सरकार को यह याद रखना चाहिए कि उसने केवल एक अच्छी शुरुआत की है। इसपर राहत की सांस लेने और काम आधा होने की सोचकर आराम करने बैठना अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने और प्रगति को रोकने जैसा होगा।