आसियान भारत शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 में ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ (एईपी) की घोषणा एक ऐतिहासिक पहल थी। ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ का उद्देश्य द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय स्तरों पर निरंतर जुड़ाव के माध्यम से आर्थिक सहयोग, सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देना और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ रणनीतिक संबंध विकसित करना है, जिससे हमारे पड़ोस के अन्य देशों के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों को बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान की जा सके। एईपी पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों और आसियान क्षेत्र के बीच एक इंटरफेस प्रदान करता है। द्विपक्षीय और क्षेत्रीय स्तरों पर विभिन्न योजनाओं में व्यापार, संस्कृति, लोगों से लोगों के बीच संपर्क और भौतिक बुनियादी ढांचे (सड़क, हवाई अड्डे, दूरसंचार, बिजली व अन्य) के माध्यम से आसियान क्षेत्र के साथ पूर्वोत्तर के संपर्क को विकसित करने और मजबूत करने के लिए निरंतर प्रयास शामिल हैं। कुछ प्रमुख परियोजनाओं में कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट, भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना, री-टिद्दीम रोड प्रोजेक्ट, बॉर्डर हाट आदि शामिल हैं।
आसियान देशों के साथ सहयोग की अधिक मंशा दिखाने के अलावा, इसने स्पष्ट किया कि सहयोग तीन आधार स्तभों पर आधारित होगा। अब तक, आर्थिक स्तंभ हावी था और सामाजिक-सांस्कृतिक स्तंभ सहयोग का एक पारंपरिक क्षेत्र रहा है। अब, राजनीतिक सुरक्षा स्तंभ को भी समान महत्व दिया गया।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू पूर्वोत्तर राज्यों पर विशेष ध्यान देना था। वे म्यांमार और थाईलैंड के सबसे करीब हैं। ये दो आसियान देश हैं जिनके साथ भारत की भूमि तक पहुंच है। गौरतलब है कि भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत दो प्रमुख परियोजनाएं, कलादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट और भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना, दोनों पूर्वोत्तर भारत के लिए म्यांमार और थाईलैंड के लिए कनेक्टिविटी परियोजनाएं हैं। ये न केवल भारत-आसियान जुड़ाव बल्कि पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और बिम्सटेक के तहत भी शामिल हैं।
उत्तर पूर्व भारत और आसियान देशों के बीच संपर्क के उन्नयन का उद्देश्य आर्थिक जुड़ाव और आपसी विकास को बढ़ाना है। विदेश मंत्रालय से प्राप्त धन त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टीमॉडल परियोजना के विकास में चला गया है, लेकिन उन निधियों को भारत में खर्च नहीं किया जा सकता है। भारत को अपने स्वयं के संसाधन बनाने होंगे या जैसा कि अब स्पष्ट हो रहा है, भारत उत्तर पूर्व मंच के माध्यम से जापान को उत्तर पूर्व भारत के विकास में योगदान करने के लिए आमंत्रित कर रहा है।
भारत और जापान ने भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र (एनईआर) के विकास और इस क्षेत्र के भीतर और इस क्षेत्र और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिए 2017 में एक्ट ईस्ट फोरम (एईएफ) की स्थापना की। एईएफ भारत के एईपी और जापान के स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के विजन के बीच तालमेल को दर्शाता है। एईएफ की अब तक छह बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन समन्वय टीम की आवश्यक आधारभूत कार्यों के लिए अक्सर बैठकें होती हैं।
इस पहल के तहत गतिविधियों को एईएफ अंतर्गत कवर किया जाएगा और एनईआर की अंतर्निहित ताकत पर निर्माण होगा। पारस्परिक परामर्श और सहमति के माध्यम से परियोजनाओं को शामिल या संशोधित करके इस दस्तावेज को समय-समय पर अद्यतन किया जाएगा। कृषि, कृषि-उद्योगों का विकास, विशेष रूप से एसएमई के माध्यम से, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देना, कौशल भारत को बढ़ावा देना, शहरी क्षेत्रों के विकास में सहयोग, स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना, वन संसाधनों के सतत उपयोग को बढ़ावा देना, नई और नवीकरणीय ऊर्जा का विकास, आपदा लचीलापन, कनेक्टिविटी संभावित रूप से उस एईएफ के तहत कवर किए जाने वाले क्षेत्रों में से हैं, लेकिन इन खंडों पर अलग-अलग राज्यों द्वारा भी कार्रवाई की जा सकती है।
आसियान देशों के साथ बनाई जा रही कनेक्टिविटी परिसंपत्तियां पूर्वोत्तर राज्यों के विकास और समृद्धि को बढ़ाने के लिए हैं। व्यावहारिक रूप से क्या किया जा सकता है?
सबसे पहले, भारत में समान बुनियादी ढांचे की आवश्यकता है। एक बार त्रिपक्षीय राजमार्ग बनने के बाद भारतीय राज्यों को अच्छी सड़कों की आवश्यकता होगी ताकि वे मोरेह पहुंच सकें, जहां से वे म्यांमार और फिर थाईलैंड तक पहुंच सकें। दूसरा, एक विजन होना चाहिए, जो सीमा व्यापार से परे हो। वर्तमान में सीमा व्यापार मुख्य व्यापार है और नए रास्तों के लिए निवेश की जरूरत है। बांस उद्योग और संबंधित औद्योगिक समूहों को देखने के लिए जापान के साथ कुछ प्रयास किए गए हैं। प्रत्येक राज्य के लिए एक पूरक औद्योगिक निवेश के लिए एक सोची-समझी प्रक्रिया होनी चाहिए जिससे उत्पादकता बढ़ेगी जो बेहतर बाजार पहुंच के लिए नए बुनियादी ढांचे का उपयोग कर सके।
तीसरा, इसे क्षेत्र के लिए एक मूल्य शृंखला अवधारणा के रूप में माना जाना चाहिए, न कि हर राज्य एक ही चीज बना रहा है। स्थानीय सामग्रियों और उपलब्ध क्षमताओं का उपयोग करके प्राथमिकताओं में अंतर हो सकता है। इससे मूल्य शृंखलाओं का निर्माण करके क्षमताओं का विलय भी हो सकता है और ये शृंखलाएं म्यांमार और फिर थाईलैंड में बढ़ते बाजार तक पहुंच सकती हैं।
यह एक महत्वपूर्ण विकास है, जिसकी आवश्यकता है अन्यथा त्रिपक्षीय राजमार्ग संबंधित निर्यात के बिना उच्च आयात का स्रोत बन जाएगा। चौथा, पूर्वोत्तर राज्यों के भीतर बुनियादी ढांचे के निर्माण से आपस में बाजार के अवसर भी खुलेंगे। म्यांमार में अनिश्चित परिस्थितियों के कारण यह घरेलू बाजार महत्वपूर्ण है, जो हमेशा त्रिपक्षीय राजमार्ग के पूर्ण उपयोग के लिए एक मुद्दा होगा जब तक कि वे दृढ़ता से तय नहीं हो जाते।
पूर्वोत्तर राज्यों को बुनियादी ढांचे, संपर्क और व्यापार सुविधा के लाभों को अच्छी तरह से आत्मसात करना चाहिए।
(लेखक जर्मनी, इंडोनेशिया, इथियोपिया, आसियान और अफ्रीकी संघ में पूर्व राजदूत और अफ्रीका में त्रिपक्षीय सहयोग पर सीआईआई टास्क फोर्स के अध्यक्ष हैं)