वर्तमान सरकार द्वारा की गई दो बड़ी पहलों के साथ राज्य अब सांस्कृतिक और खेल गतिविधियों केंद्र में है। सांस्कृतिक महासंग्राम, जिसमें असम के लोग आने वाले महीनों में लोक नर्तकियों के साथ नृत्य करते हुए ज्योति प्रसाद, बिष्णु राभा, भूपेन हजारिका और रवींद्र नाथ टैगोर की कुछ बेहतरीन रचनाएं गुनगुनाएंगे। इसका उद्देश्य न केवल ग्रामीण क्षेत्रों से प्रतिभाओं का पता लगाना है बल्कि यह संस्कृति का एक उपकरण के तौर पर सबको एकजुट करने का असाधारण प्रयोग भी है। यदि इसे ऐसा समझें तो इस अभूतपूर्व कार्यक्रम में कम से कम 10 लाख सांस्कृतिक उत्साही 3,000 से अधिक मंचों पर खुद को अभिव्यक्त करते हुए दिखाई देंगे। जाहिर है, यह कोई मामूली उपलब्धि नहीं है। महासंग्राम की योजना बनाने में जो विवरण दिए गए हैं, वे किसी के लिए भी ध्यान देने योग्य हैं। फिर भी, बिना किसी चिंता के, जिला और राज्य मशीनरी अपने अभियान में आगे बढ़ गए हैं।
खेल महारण भी इस लिहाज से अद्वितीय है। इसे पांच प्रमुख विषयों में आयोजित करने की योजना बनाई जा रही है और इसमें 50 लाख से अधिक खेल प्रेमियों के शामिल होने की उम्मीद है। यहां विचार उल्लेखनीय है, प्रतिभाओं को उभरने का मौका देना। भारत की हालिया खेल सफलता और राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारे खिलाड़ियों की सफलता इस तथ्य का संकेत है कि सरकारी संरक्षण चैंपियन तैयार करने में काफी मददगार साबित होगा।
किसी भी सरकार की भूमिका उत्कृष्टता के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की है। इसे असम में भी देखा जा सकता है, जहां वर्तमान सरकार यह सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है कि हमारी प्रतिभाएं अपनी छाप छोड़ें। चाहे वह प्रसिद्धि हासिल करना हो या गायन और नृत्य करके लोगों के दिलों तक अपनी जगह बनाना हो। अब इस बात पर पैनी नजर रहेगी कि दिसपुर में उत्पन्न विचारों को जमीन पर कैसे क्रियान्वित किया जाता है।