असम के लिए एक ऐतिहासिक क्षण में पांच आदिवासी उग्रवादी संगठनों और तीन अलग-अलग समूहों ने 15 सितंबर को भारत सरकार और राज्य सरकार के साथ एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्वशर्मा ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को इस दिशा में उठाए गए कदमों के लिए आभार जताया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने इस समझौते को हाल के वर्षों में राज्य द्वारा हासिल की गई एक और मील का पत्थर करार दिया।
पांच आदिवासी संगठन जो शांति समझौते का हिस्सा थे, वे हैं: बिरसा कमांडो फोर्स (बीसीएफ), आदिवासी पीपुल्स आर्मी (एपीए), ऑल आदिवासी नेशनल लिबरेशन आर्मी (एएनएलए), असम की आदिवासी कोबरा मिलिट्री (एसीएमए) और संथाल टाइगर फोर्स (एसटीएफ) ) तीन अलग समूह बीसीएफ, आनला और एसीएमए के हैं।
डॉ. शर्मा ने ट्वीट किया, इन संगठनों के कार्यकर्ता 2016 से निर्दिष्ट शिविरों में रह रहे हैं, जब उनके 1,182 कार्यकर्ताओं ने हथियार डाल दिए और मुख्यधारा में लौट आए। मुझे यकीन है कि आज का ऐतिहासिक समझौता जो कभी गुमराह हुए युवाओं के पर्याप्त पुनर्वास का वादा करता है, असम में शांति के एक नए युग की शुरुआत करेगा। गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि समझौता 2025 तक शांतिपूर्ण उत्तर पूर्व भारत के प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण और असम में आदिवासियों और चाय बागान श्रमिकों के दशकों पुराने संकट को समाप्त करने की दिशा में एक और कदम था।समझौते में सशस्त्र कैडरों के पुनर्वास के साथ ही चाय बागान श्रमिकों के कल्याण संबंधति पहलों का भी प्रावधान है।
आदिवासी बहुल गावों और क्षेत्रों के ढांचागत विकास के लिए अगले पांच साल तक 1000 करोड़ रुपये (भारत सरकार और असम सरकार द्वारा 500-500 करोड़) का विशेष पैकेज प्रदान किया जाएगा। समझौते में असम सरकार की ओर से एक आदिवासी कल्याण और विकास परिषद की स्थापना का प्रावधान है। जिसका उद्देश्य समुदाय के राजनीतिक, आर्थिक और शैक्षिक आकांक्षाओं को पूरा करने के साथ ही सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषायी व जातीय पहचानों की रक्षा, संरक्षण और संवर्धन है।