अब वक्त आ गया है कि इस तथ्य को स्वीकार किया जाए कि भारत के सामाजिक-राजनीतिक, आर्थिक सांस्कृतिक या वैज्ञानिक विकास में एक बड़ी बाधा व्यापक उच्च गुणवत्ता वाले शोध की कमी है, या इससे भी अधिक, इसके लिए सरकारी समर्थन की कमी है। ऐसे में शोध के लिए संसाधन उपलब्ध कराना हमारे रचनात्मक क्षमता से लबरेज विशाल मानव संसाधन का उपयोग करने के सर्वोत्तम संभव तरीकों में से एक है।
अनुसंधान को शिक्षा और करियर विकल्प दोनों ही दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए। यह न केवल व्यक्तियों को नवीन रूप से सोचने के लिए प्रेरित करेगा बल्कि इसके परिणामस्वरूप पर्यावरण से संबंधित समकालीन समस्याओं, गरीबी से लड़ने, आदि के प्रभावशाली समाधान भी मिलेंगे। साथ ही यह बौद्धिक संतुष्टि भी प्रदान करेगा और सांस्कृतिक से ऐतिहासिक व राजनीतिक से आर्थिक, सभी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण मूल्यांकन का एक उपकरण भी साबित होगा। अब तक देश में शिक्षा के प्रति जिस तरह का दृष्टिकोण प्रचलित है, वह 21वीं सदी के वैश्विक समाज के लिहाज से रोजगार पैदा करने और उपयोगी श्रम के संबंध में बहुत प्रभावशाली नहीं रहा है। ऐसे में एक शोध-आधारित दृष्टिकोण से सही मायने में उत्पादक और सक्षम कार्यबल तैयार होगा जो व्यावहारिक ज्ञान से लैस होगा। यह सरकार और समाज दोनों के लिए लाभकारी निवेश होगा। उदाहरण के लिए, भारतीय आर्थिक और सामाजिक अनुसंधान में प्रगति व्यापक और कुशल नीतियों को बनाने और लागू करने में मदद करेगी जबकि साहित्यिक और संगीत के क्षेत्र में हुआ शोध हमारी विरासत को संरक्षित व जीवंत रखने में योगदान देगा।
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए इस मामले पर गौर करने और भारत में अनुसंधान क्षेत्र को बाधित करने वाली समस्याओं का समाधान खोजने की तत्काल जरूरत है। इसकी शुरुआत सरकार उन सभी अनुदानों की समीक्षा से कर सकती है, जो पात्र शोधकर्ताओं तक पहुंचे ही नहीं। ऐसा करके इस मामले में हो रहे अनंत विलंब को खत्म किया जा सकता है।
पूरे तंत्र को कुछ इस तरह से पुनर्जीवित किया जाना चाहिए जिससे एक विशिष्ट समय सीमा के भीतर अनुदान प्राप्त करने में सुविधा हो।
देश और वैश्विक समाज के फायदे के लिए यह बेहद जरूरी है कि बड़ी क्षमता वाली अच्छी परियोजनाओं की पहचान की जाए और उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान करने में सक्षम बनने की जरूरत है।
एक और उपयोगी कदम आवेदन/अपील प्रणाली के साथ एक एक ऐसी नई ‘अनुसंधान अनुदान’ नीति तैयार करना हो सकता है। जो सक्षम व्यक्तियों द्वारा पूरी तरह से जांच के बाद बड़ी क्षमता वाली परियोजनाओं को वित्तीय और अन्य समर्थन प्रदान करे।
यह काफी हद तक भारतीय शिक्षा प्रणाली के पारंपरिक कैनवास को बदलने के लिए तैयार राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुरूप होगा।
सरकार को लीक से हटकर विचारों वाले युवाओं को प्रोत्साहित करने और उन्हें कुछ नया व बड़ा सोचने के लिए आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी अपने हाथों में लेनी होगी।